कोंच(जालौन): सत्रह दशक पुरानी कोंच की ऐतिहासिक रामलीला का 170वां महोत्सव जारी है। बुधवार देर शाम पहली मैदानी लीला गंगापार का मंचन मेले के रूप में ऐतिहासिक सागर तालाब में किया गया जिसमें वनवासी राम अपनी भार्या सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ नाव द्वारा तालाब में इस पार से उस पार जाते हैं। इससे पूर्व राम केवट संवाद दर्शाया जाता है जिसमें राम लक्ष्मण व जानकी के पैर पखार कर केवट ने उन्हें नाव से गंगापार कराया।
सागर तालाब के पूर्वी छोर पर बल्दाऊ मंदिर की ओर बने बड़े प्लेटफार्म पर राम-केवट संवाद का प्रसंग मंचित होता है। गौड़वंशीय परंपरा का निर्वाह करते हुए अतुल चतुर्वेदी के पुत्र नमन चतुर्वेदी केवट की भूमिका में राम, लक्ष्मण और जानकी के पांव पखारकर उन्हें नाव में चढा कर गंगा के प्रतीक सागर तालाब में इस पार से उस पार ले जाकर लीला की औपचारिकता करते हैं। अयोध्या शोध संस्थान द्वारा देश की सर्वश्रेष्ठ घोषित मैदानी रामलीला की यह पहली मैदानी लीला है जो मेले के रूप में दर्शाई गई है। भगवान को नाव द्वारा इस पार से उस पार ले जाने में ढीमर बिरादरी के राजेंद्र चौधरी, घनश्याम, लल्लू रायकवार आदि लगे थे। इस दौरान रामलीला संचालित करने वाली संस्था धर्मादा रक्षिणी सभा के अध्यक्ष गंगाचरण वाजपेयी, मंत्री मिथलेश गुप्ता, कोषाध्यक्ष नवनीत गुप्ता, रामलीला समिति के संरक्षक द्वय पुरुषोत्तम रिछारिया, केशव बबेले, अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल मोंठ वाले, मंत्री संजय सोनी अभिनय विभाग के अध्यक्ष रमेश तिवारी, मंत्री सुधीर सोनी, अतुल चतुर्वेदी, सुशील दूरवार, छुन्ना धनौरा, लालजी कुशवाहा, अखिलेश चचौंदिया, दीपक गर्ग, ध्रुव सोनी आदि सहयोग कर रहे थे। मेला देखने के लिए सागर तट पर सैकड़ों की संख्या में लोग जुटे थे।
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दशरथ प्राण लीला देख भावुक हुए दर्शक
कोंच(जालौन): देर शाम गंगापार मेले के बाद रात्रि में दशरथ प्राण त्याग लीला का मंचन रंगमंच पर किया गया। राम लक्ष्मण और सीता को वन में छोड़कर लौटे अयोध्या के मंत्री सुमंत्र ने जब महाराज दशरथ को बताया कि राम ने अयोध्या लौटने से मना कर दिया है और वह गंगा पार कर चित्रकूट की ओर प्रस्थान कर गए हैं तो पुत्र वियोग में दशरथ का शरीर शिथिल पड़ जाता है और उन्हें अपनी जवानी की उस घटना का स्मरण हो उठता है जब उनके शब्द भेदी बाण से श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है और उसके वृद्ध माता-पिता दशरथ को पुत्र वियोग में मरने का श्राप दे देते हैं। हा राम, हा राम का उच्चारण करते हुए दशरथ प्राण त्याग देते हैं। गुरु बशिष्ठ का आदेश पाकर दूत कैकय देश जाकर भरत शत्रुघ्न को ननिहाल से लेकर आता है। दोनों भाई दिवंगत दशरथ का अंतिम संस्कार करते हैं।