काशी के आचार्य सन्तोष कुमार शब्देन्दु के अनुसार चन्द्रमा को मन और औषधि का देवता माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। इस दिन चांदनी रात में दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इससे विषाणु दूर रहते हैं। शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में खीर रखने का विधान है। खीर में मौजूद सभी सामग्री जैसे दूध,चीनी और चावल के कारक भी चन्द्रमा ही है,अतः इनमें चन्द्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है। शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे खीर पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। प्राकृतिक चिकित्सालयों में तो इस खीर का सेवन कुछ औषधियां मिलाकर दमा के रोगियों को भी कराया जाता है। यह खीर पित्तशामक,शीतल,सात्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है। इससे चित्त को शांति मिलती है। रात के समय मां लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाएं,उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें,उन्हें सफेद मिठाई और सुगंध भी अर्पित करें। “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः” मन्त्र का जाप करें ।
जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है या फिर नीच राशि वृश्चिक में हो अथवा राहू केतु का प्रभाव हो,कर्क लग्न राशि में पैदा होने वाले तथा वृश्चिक राशि वालों को सर्दी-जुकाम या खांसी यानी कोल्ड, एलर्जी, मां का स्वास्थ्य खराब, जल्दी से क्रोध आना, बात-बात पर चिड़चिड़ापन, मूड खराब हो जाना अथवा बीपी की परेशानी हो जाती है ।ऐसे जातक पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ दूध, चावल, घी और चीनी तथा मेवे डालकर खीर तैयार कर लें। अब एक चांदी की थाली या कटोरी ले। एक पात्र में केसर को घिसकर रख लें और अनार के पेड़ की सूखी हुई लकड़ी को छीलकर कलम जैसा बना लें। अब इसी कलम से केसर से चांदी या किसी किसी अन्य बर्तन में ॐ चंद्राय नमः मंत्र लिख दें फिर उसी पात्र में खीर को निकालकर चांदनी की रोशनी में किसी जालीदार कवर से ढककर रख दें। मध्य रात्रि में चंद्रमा से इसमें अमृत वर्षा होने दें और प्रातः उठकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।