लेखक: पं. विजयशंकर मेहता

कहानी – श्रीकृष्ण के मन में ये विचार चल रहा था कि मेरे यहां एक पुत्र का जन्म हो और वह ऐसा पुत्र हो, जिस पर मुझे गर्व हो। वे संतान प्राप्ति की कामना लेकर श्रीकृष्ण हिमालय पर्वत पर पहुंचे, वहां ऋषि उपमन्यु रहते थे।

उपमन्यु मुनि श्रीकृष्ण के लिए गुरु समान ही थे। जब श्रीकृष्ण ने उपमन्यु जी को अपनी इच्छा बताई तो उपमन्यु ने कहा कि आप शिव जी की भक्ति करें।

उपमन्यु जी की बात मानकर श्रीकृष्ण ने शिव जी की भक्ति करना शुरू कर दिया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी और माता पार्वती प्रकट हुए।

शिव जी ने श्रीकृष्ण से पूछा, ‘बताइए, आप क्या वरदान चाहते हैं?’

श्रीकृष्ण बोले, ‘मुझे श्रेष्ठ संतान चाहिए।’

शिव जी ने कहा, ‘आपके यहां सांब नाम का पुत्र होगा।’

श्रीकृष्ण ने सोचा कि यहां माता पार्वती भी खड़ी हैं तो मुझे इन्हें भी प्रणाम करना चाहिए। उन्होंने देवी को प्रणाम किया तो देवी बहुत प्रसन्न हुईं। देवी ने सोचा कि इन्होंने केवल शिव जी को ही नहीं, मुझे भी मान दिया है। देवी ने कहा, ‘कृष्ण बताओ आप क्या चाहते हो?’

श्रीकृष्ण ने देवी से आठ बातें मांगीं। ब्राह्मणों के लिए मेरे मन में सम्मान हो। सदैव माता-पिता को संतुष्ट रखूं। सभी प्राणियों के लिए मेरे हृदय में प्रेम हो। मेरे बच्चे हमेशा श्रेष्ठ रहें। यज्ञ आदि करके मैं पूरे वातावरण को दिव्य रखूं। साधु-संतों का सम्मान करूं। मेरे भाई-बंधुओं से मेरा प्रेम बना रहे और मैं अपने परिवार में सदा संतुष्ट रहूं।

ये आठ बातें पार्वती जी ने प्रसन्न होकर कृष्ण जी दीं।

सीख – श्रीकृष्ण अपने आचरण से हमें सीख दे रहे हैं कि व्यक्ति को अपने परिवार के लिए हमेशा अच्छे-अच्छे काम करते रहना चाहिए। अपने परिवार की प्रगति के लिए जहां से भी कुछ मिले, अगर वह शुभ है, पवित्र और सही है तो उसे परिवार तक पहुंचाना चाहिए। पारिवारिक जीवन में भी अनुशासित जीवन शैली होनी चाहिए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *