भगवान भोलेनाथ के भक्तों के लिए महाशिवरात्रि बहुत ही विशेष पर्व है। महादेव के भक्त पूरे वर्ष महाशिवरात्रि का इंतजार करते हैं। इस बार यह पर्व 1 मार्च 2022 को  मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस खास दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। साथ ही यह भी कहा जाता है की भगवान शंकर ने इसी दिन साकार रूप लिया था। भगवान भोलेनाथ औघड़ दानी भी कहे जाते हैं। भगवान भोलेनाथ का ध्यान करते ही जटाधारीम सर्प और डमरू धरण करने वाले और त्रिशूलधारी शिव की छवि नजर आती है। भगवान भोलेनाथ का प्रमुख अस्त्र त्रिशूल है। हालांकि वो संहारक हैं और उन्हें किसी भी अस्त्र की आवश्यक नहीं है परंतु नीलकंठ महादेव के सभी वस्तुएं किसी न किसी का प्रतीकात्मक स्वरूप मानी जाती है। भगवान शिव के पास त्रिशूल कैसे आया, त्रिशूल किसका प्रतीक है और क्या है इसका महत्व, आइए जानते हैं विस्तार से-

भगवान शिव के त्रिशूल का महत्व

भगवान शिव का त्रिशूल पवित्रता एवं शुभकर्म का प्रतीक है। प्रायः समस्त शिवालयों में त्रिशूल स्थापित किया जाता है। कई शिवालयों में सोने चांदी और लोहे की धातु से बने त्रिशूल  दिखाई देते हैं। भगवान शिव का त्रिशूल में जीवन के कई रहस्य है। हिंदू मान्यता के अनुसार कई देवी-देवता त्रिशूल धारण करते हैं मान्यता है कि जब भगवान भोलेनाथ ब्रह्मनाद से प्रकट हुए तभी सृष्टि में तीन गुण उत्पन्न हुए और शिव जी शूल बनें और इससे ही त्रिशूल का निर्माण हुआ।  विष्णु पुराण में  उल्लिखित है कि विश्वमकर्मा ने सूर्य के अंश से त्रिशूल का निर्माण किया था, जिसको उन्होंने भगवान शिव को अर्पित किया था।

तीन गुणों का प्रतीक

भगवान शिव जब प्रकट हुए थे तब उनके साथ रज, तम और सत गुण भी प्रकट हुए थे और इन्हीं तीन गुणों से मिलकर भगवान भोलेनाथ शूल बनें और इसी से त्रिशूल बना।

तीन काल का प्रतीक

महादेव के त्रिशूल को तीन काल भूतकाल, भविष्य काल और वर्तमान काल से भी जोड़कर देखा जाता है। इसी कारण से महादेव को भक्त  त्रिकालदर्शी भी कहते  हैं।

3 प्रकार के कष्टों के विनाश के सूचक

भगवान महादेव का त्रिशूल  दैनिक, दैविक और भौतिक इन 3 प्रकार के कष्टों के विनाश का भी सूचक है।

उत्पत्ति, निर्माण और विनाश का प्रतीक

भगवान शिव का त्रिशूल के 3 शूल सृष्टि के उदय, संरक्षण और संहार करने का भी सूचक  है।

शैव सिद्धांत के प्रतिनिधि

शैव मतानुसार भगवान शिव का त्रिशूल शैव सिद्धांत के पशुपति, पशु एवं पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है।

तीन नाड़ियों का प्रतीक

भगवान भोलेनाथ का त्रिशूल वाम भाग में स्थिर इड़ा, दक्षिण भाग में पिंगला और मध्य भाग में सुषुम्ना नाड़ी का भी प्रतीक है।

 

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