ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक मंगलवार को जब सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में या एक-दूसरे के पास वाली राशि में होते हैं तो भौमावस्या का योग बनता है। इस बार ये संयोग वैशाख महीने की अमावस्या पर यानी 11 मई को बन रहा है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा एकसाथ यानी भरणी नक्षत्र में रहेंगे। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। जिससे इस दिन पितरों के लिए किए गए श्राद्ध और पूजा से सुख-समृद्धि बढ़ेगी।

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि मंगलवार को पड़ने वाली इस अमावस्या पर पितरों की विशेष पूजा की जाए तो परिवार के रोग, शोक और दोष खत्म हो जाते हैं। मंगलवार को अमावस्या होने से इस दिन मंगल दोष से बचने के लिए व्रत और पूजा की जाती है।

स्नान-दान का महत्व

भौमवती अमावस्या के दिन स्नान, दान करने का विशेष महत्व बताया है। वैशाख महीना होने से इसका पुण्य और भी बढ़ गया है। इस दिन दान करना सबसे अच्छा माना गया है। देव ऋषि व्यास ने ग्रंथों में कहा है कि इस तिथि में स्नान और दान करने से हजार गायों के दान का पुण्य फल मिलता है। भौमवती अमावस्या पर हरिद्वार, काशी जैसे तीर्थ स्थलों और पवित्र नदियों पर स्नान करने का विशेष महत्व होता है, लेकिन महामारी या देश-काल और परिस्थितियों के अनुसार इस दिन घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाने से भी इसका पुण्य प्राप्त होता है।

शुभ संयोग में स्नान-दान का अक्षय फल

मंगलवार को अमावस्या के शुभ संयोग में स्नान और दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से लेकर दोपहर करीब 2.50 तक की अवधि में अमावस्या तिथि के दौरान स्नान और दान करने का खास महत्व है। साथ ही इस समय में पितरों के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिससे पितृ पूरी तरह संतुष्ट हो जाते हैं

अन्न-जल और दीपदान का महत्व

ग्रंथों में लिखा है कि वैशाख महीने की अमावस्या पर जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाना चाहिए। साथ ही जलदान भी करना चाहिए। ऐसा करने से स्वर्ण दान करने जितना पुण्य मिलता है। इसके साथ ही वैशाख महीने की अमावस्या पर पितरों के लिए एक लोटे में पानी, कच्चा दूध और उसमें तिल मिलाकर पीपल पर चढ़ाना चाहिए और दीपक लगाना चाहिए। इस पर्व पर दीपदान करने से पितृ संतुष्ट होते हैं।

 

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