जन्माष्टमी के बाद अगले दिन नंद गांव में नंदोत्सव मनाया जाता है। नंद गांव मथुरा से करीब 50 किमी दूर स्थित है। मान्यता है कि जब नंद बाबा, यशोदा, कान्हा और बलदाऊ गोकुल में रहते थे, तब कंस बार-बार श्रीकृष्ण को मारने के लिए राक्षसों को भेज रहा था। गोकुल मथुरा से बहुत करीब था। उस समय कान्हा की सुरक्षा के लिए नंद बाबा ने नंद गांव बसाया था। ये गांव मथुरा से कुछ दूरी पर है। इस गांव में आज भी जन्माष्टमी के बाद अगले दिन नंदोत्सव मनाया जाता है। इस दिन बाल गोपाल की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। श्रीकृष्ण भजन गाए जाते हैं।
श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में अलग-अलग घटनाओं के माध्यम से कई ऐसे सूत्र बताए हैं, जिन्हें अपनाने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। जानिए श्रीकृष्ण और अर्जुन से जुड़ा एक ऐसा किस्सा, जिसमें श्रीकृष्ण ने घमंड से बचने की सलाह दी है।
महाभारत युद्ध में जब अर्जुन और कर्ण का आमना-सामना हुआ तो दोनों ही योद्धा पूरी शक्ति से लड़ रहे थे। अर्जुन के बाण के कर्ण के रथ पर लगते तो उसका रथा 20-25 हाथ पीछे खिसक जाता था। जबकि कर्ण के प्रहारों से अर्जुन का रथ 2-3 हाथ ही खिसकता था।
जब-जब कर्ण का बाण रथ पर लगता श्रीकृष्ण उसकी प्रशंसा करते, लेकिन अर्जुन के बाणों के बारे में कुछ नहीं कह रहे थे। ये देखकर अर्जुन से रहा नहीं गया।
अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा, ‘जब मेरे बाण कर्ण के रथ पर लगते हैं तो उसका रथ बहुत पीछे खिसक जाता है, जबिक उसके बाणों से मेरा रथ थोड़ा सा ही खिसकता है। मेरे बाणों की अपेक्षा कर्ण के बाण बहुत कमजोर हैं, फिर भी आप उसकी प्रशंसा क्यों कर रहे हैं?’
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जवाब दिया, ‘तुम्हारे रथ पर मैं स्वयं हूं। ऊपर ध्वजा पर हनुमानजी विराजित हैं, रथ के पहियों को स्वयं शेषनाग ने पकड़ रखा है। इन सबके बावजूद कर्ण के प्रहार से ये रथ थोड़ा सा भी पीछे खिसक रहा है तो उसके बाण कमजोर नहीं हैं। तुम्हारे साथ मैं हूं और कर्ण के साथ सिर्फ उसका पराक्रम है। फिर भी वह तुम्हें कड़ी टक्कर दे रहा है। इसका मतलब यही है कि कर्ण तुमसे कमजोर नहीं है।’
ये सुनकर अर्जुन का घमंड टूट गया। अर्जुन को समझ आ गया कि अपनी शक्तियों पर घमंड नहीं करना चाहिए और शत्रु को कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिए।