जिला सम्वाददाता
अलीगढ़ । दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां देवता के साथ ही जीव-जंतु की भी पूजा की जाती है। पशुओं को भी किसी न किसी रुप में देखा जाता है, इसलिए भारत दुनिया के अन्य देशों में से सबसे अलग है।
गोपाष्टमी पर गऊ माता की पूजन की तैयारी
11 नवंबर को गोपाष्टमी है। गऊ माता की पूजन की तैयारियां चल रही हैं। गोभक्त कृष्णा गुप्ता कहती हैं कि दुनिया के लोगों को आश्चर्य होता है कि हम गऊ माता की पूजा करते हैं। 33 कोटि देवी-देवताओं का निवास गऊ माता में है। गाय का दूध भी सर्वोत्तम बताया गया है। यह वैज्ञानिकता पर भी खरा उतरता है। कई देशों में तो देसी गऊ माताओं पर शोध हुआ है और उनके दूध के महत्व को जाना भी गया है। कृष्णा गुप्ता ने कहा कि हिंदू धर्म में कोई भी पूजन और आयोजन हो, उसका वैज्ञानिक आधार जरूर होता है। गऊ माता के पूजन में भी वैज्ञानिक अाधार है, इस बहाने हम गाय की प्रमुखता के बारे में जान पाते हैं, हमें पता चलता है कि गाय हम सभी के लिए कितनी प्रमुख हैं। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गऊ माता का पूजन किया। गऊ माता को चराने के लिए वह वन-वन भटकते थे। वंशीवट में उन्होंने गऊ माता को चराया। इसका प्रमुख कारण था कि गऊ माता में साक्षात देवी-देवताओं का वास है। इसलिए हमें भी गऊ माता का पूजन करना चाहिए।
हमारे धर्मग्रंथों में गाय को मां का दर्जा दिया गया
गोपाष्टमी पर 11 नवंबर को पूरे जिले में गऊ माता का पूजन होना चाहिए। खासकर छोटे-छोटे बच्चों को पूजन कराएं, उन्हें बताएं कि गोपाष्टमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण गऊ माता को चराने के लिए निकले थे। इसीलिए हमारे सनातन धर्म में यह दिन सबसे प्रमुख दिनों में माना जाता है। गोसेवक अखिल मांगलिक का कहना है कि बिना गऊ माता की सेवा के उद्धार नहीं हो सकता है। इसलिए हमारे धर्म-ग्रंथों में गाय को मां का दर्जा दिया गया है। हम सभी को गऊ माता का पूजन करना चाहिए। समाजसेवी भूपेंद्र शर्मा ने कहा कि तमाम पशु और पक्षियों का जुड़ाव देवी-देवताओं से है। मां दुर्गा की सवारी शेर है, भगवान श्रीकृष्ण के गले में सर्प हमेशा रहता है, लक्ष्मी जी की सवारी उल्लू है। इससे जानना चाहिए कि हमारे देश में पशु-पक्षियों का भी पूजन किया जाता है, उन्हें भी किसी न किसी रुप में पूजा जाता है। सनातन धर्म पर्यावरण की भी सबसे बड़ी रक्षक है।