लखनऊ  । आम के बाद अमरूद को लेकर अपनी पहचान बना रहे लखनऊ के बागवानों के लिए यह खबर चिंता बढ़ाने वाली है। मौसम की बेरुखी का असर अब आम के बाद अमरूद पर भी पड़ने वाला है। पिछले कई वर्षों से इस फसल पर बीमारियों एवं लखनऊ के मोहनलालगंज के मदारीखेड़ा के दो हेक्टेयर अमरूद के बाग में फैला रोग।कीटों के कारण किसान इसकी बाग लगाना बंद कर दिए हैं। इस वर्ष किसानों के अमरूद के बागों पर निमेटोड का भीषण आक्रमण है । किसान भाई इस बीमारी को पहचान नहीं पा रहे हैं। इसके कारण वे विभिन्न प्रकार के घातक कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे थे, जिससे बीमारी बढ़ती चली गई।

लखनऊ के मोहनलालगंज विकास खंड के गांव मदारी खेड़ा में दो हेक्टेयर अमरूद के बाग में निमेटोड की समस्या देखी गई। इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं कि पौधे ऊपर से सूखने लगते हैं और धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है, जब तक जड़ों को खोदकर उस में गांठे नहीं देखी जाती तब तक इस बीमारी को पहचानना मुश्किल होता है।यह निमेटोड पौधे के आंतरिक भाग में रहता है। हजारों की संख्या में निमेटोड पौधों के अंदर रहते हैं। प्रौढ़ अवस्था में इसकी मादाएंं जड़ों में गांठें बना देती हैं। गांठे अंडों के कारण फूल जाती है । जड़ों में गांठे बनना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण है। इस नेमेटोड़ के अंडे करीब 14 वर्ष तक जीवित रहते हैं और अपना प्रकोप अमरूद के पौधों पर करते रहते हैं। इस निमेटोड के लारवा जमीन के द्वारा पौधों की जड़ों में अपने मुख से प्रवेश करते हैं और पूरे पौधों के अंदर पहुंच जाते हैं। बीमारी का प्रकोप मई,- जून माह से प्रारंभ हो जाता है और धीरे-धीरे जुलाई-अगस्त में पूरा पौधा सूख जाता है। पौधे की ऊपरी पत्तियां पीली हो कर गिर जाती हैं। फल छोटे लगते हैं और गिर जाते हैं। लखनऊ के मोहनलालगंज विकास खंड के गांव मदारी खेड़ा में एक अमरूद के बाग का निरीक्षण किया गया जिसमें निमेटोड के द्वारा ग्रसित 350 पौधे देखे गए जिसमें यह पाया गया कि पिछले तीन वर्षों से इस बाग में निमेटोड का आक्रमण हो रहा है । बख्शी का तालाब स्थित चंद्र भानु गुप्ता कृषि महाविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ व सहायक प्रवक्ता डा.सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि किसान अपने बागों में प्रमुख रूप से साफ सफाई रखें । जलभराव की स्थिति न होने दें और समय-समय पर बाग की छंटाई करते रहें। किसानों को प्रमुख रूप से कार्बोफ्यूरान 10जी 100 ग्राम तथा कार्बेंडाजिम 50 फीसद डब्लूपी 50 ग्राम मात्रा को प्रति पौधों की दर से जमीन में छिड़क कर गुड़ाई करनी चाहिए।

 

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