बदायूँ : उझानी मे मेरे राम सेवा आश्रम पर एक माह तक चलने वाली श्री राम कथा महोत्सव नवें दिन रवि जी समदर्शी महाराज ने नारद मोह की कथा सुनाई।

उन्होंने कहा भगवान शंकर पार्वती से कहते हैं देवी एक बार तुम्हारे गुरुदेव ने मेरे इष्ट गुरु भगवान विष्णु जी को श्राप दिया यह कल की कथा है देवी जी चकित हो गई कहने लगी ऐसा नहीं हो सकता मेरे गुरुदेव ऐसा कर ही नहीं सकते। मेरे गुरदेव तो भगवान के भक्त हैं और ज्ञानी भी हैं देवता ऐसा क्यों करेंगे आपके ईस्ट गुरु भगवान विष्णु ने ही कोई अपराध किया होगा एकदम मुस्कुराकर शिवजी भगवान बोले देवी इस संसार में ना तो कोई ज्ञानी है ना कोई अज्ञानी है जैसे मेरे प्रभु करते हैं उस समय वैसा ही होता है ,पत्ता तक हिलता नहीं खेले ना कोई फूल तेरी सत्ता के बिना हे प्रभु मंगल मूल, उसकी इच्छा के बिना कोई भी कार्य नहीं होता यहां तक पता भी नहीं सकता सुनो दी तुम्हारी गुरुदेव कहां तक पहुंच गए,

एक बार की बात है तुम्हारे गुरुदेव नारद जी पर्वत की कंदरा में घूमने निकले और नदी के किनारे समाधि लग गई इंद्र घबरा गया उससे समाधि तोड़ने के लिए कामदेव को भेजा कामदेव कुछ नहीं कर पाए तब प्रशंसा करके नारद जी की समाधि को तोड़ा।

कामदेव नारद जी से बोले आप तो बहुत पहुंचे हुए संत हैं आपने तो भगवान शंकर को भी पीछे छोड़ दिया उन्होंने क्रोध किया पर आपने तो क्रोध भी नहीं किया नारद जी तारीफ सुनकर और आशीर्वाद देने लगे कामदेव काम क्रोध लोभ मोह इशारे मित्र हैं जैसे कामदेव को स्पर्श किया सर पर हाथ रखा काम का शरीर में प्रवेश हो गया दौड़कर भगवान शंकर के पास गए और सारी कथा सुनाइए शंकर जी ने कहा यह कथा आपने मुझे सुनाई है जो काम को जीतने की किसी और को मत सुनाना लेकिन नारद जी पर काम सवार था वे अपने पिताजी को सुनाने चले गए उन्होंने भी मना किया ना लगे नारद जी सोचने लगे मेरे पिताजी और भगवान शंकर मुझसे ईर्ष्या की वजह से मना कर रहे हैं मैं तो भगवान विष्णु के पास जाऊंगा और भगवान विष्णु के पास गए भगवान ने बराबर का आदर दिया बराबर विठाला हालचाल पूछे नारद ने सारी काम कथा सुना दी भगवान समझ गए नारद पर काम सवारे अगर अगर शिष्य का पतन हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी गुरु की भी होती है नारद जी प्रणाम कर जगदीश को छोड़कर जगत की ओर चले हमu भी जगदीश नहीं जगत को प्रमुख मानते हैं यही कारण है कि हम दुखी रहते हैं राम की जगह काम को सुंदर मानते हैं रास्ते में माया निर्मित एक सुंदर सा बैकुंठ से भी अच्छा एक नगर दिखा जहां के राजा सैलरी थे वहां नारद जी नारद ले ने पूछा यह कौन सा नगर है इतनी सजा क्यों है पता चला कि उनकी बेटी का स्वयंवर नाम विश्वमोहिनी सुना तो दौड़कर उनके घर पहुंच गए राजा ने बहुत स्वागत सम्मान किया नारद जी को देखा और अपनी बेटी को बुलाकर उसका भविष्य जानने की इच्छा जाहिर की नारद जी ने जैसे ही हाथ देखा उल्टा बताने लगे कहने लगे जो से विवाह करेगा वह तीनों लोकों का स्वामी होगा उसे युद्ध में कोई हरा नहीं सकेगा और और और यह सब विचार आते ही सोचने लगे मेरा इससे विवाह कैसे हो जप छोड़ दिया, तप छोड़ दिया, माला कंठी सब को छोड़कर बागी और भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे

और कहने लगे प्रभु मुझे सुंदर सा रूप चाहिए भगवान विष्णु ने कहा रोगी को उसकी इच्छा के अनुरूप नहीं बल्कि वह स्वस्थ रहे ऐसा पत्र दिया जाता है और उन्होंने सुंदर की जगह बंदर रूप दे दिया भगवान के दो गण यह सब देख रहे थे और नारद जी के साथ रहे लौटकर स्वयंवर में पहुंचे नारद जी विश्व मोहिनी ने नारद जी की ओर देखा तक नहीं और भगवान आए राजकुमार का रूप रखकर और एक दूसरे का माल्यार्पण करते हुए अपने साथ ले गए नारद जी क्रोध में भगवान की तरफ दौड़े आगे चौराहे पर भगवान मिले उनके साथ विश्व मोहिनी और लक्ष्मी जी दोनों थी बहुत गालियां बकी उल्टा सीधा बोले लेकिन मेरे प्रभु हंसते रहे श्राप दे दिया ना जी ने बाद में जब भगवान ने अपनी मां को हटाया दुखी हो गए और सब बताया कि मेरी इच्छा से सब हुआ है अर्जित किया भगवान ने विधि बताएं हिमालय ओम ओम नमः शिवाय का जाप करो नारद जी प्रणाम करते वहां से चले गए यह राम कथा हमें बताती है कि जितने भी विकार हैं आपस में मित्र हैं काम के बाद क्रोध क्रोध के बाद लोग अहंकार सब कुछ आता है इसलिए एक भी विकार से दूर रहना है केवल राम का नाम जपना रहना है कथारत रहना है ध्यान रत रहना है।

आज नवे दिन की कथा के यजमान राहुल माहेश्वरी रहे। कथा में राजू चौहान, सत्येंद्र चौहान, विकास, सीटू, कौशल सोलंकी, विष्णु गुप्ता, गिरीश पाल सिंह, करुणा सोलंकी, कमलेश मिश्रा, कामिनी तिवारी, सहायता शर्मा, अरविंद शर्मा, साधना सोलंकी, अलंकार अंकित चौहान, पत्रकार संजीव वर्मा, गुड्डी देवी, राखी साहू, मोना चौधरी, सुनीता, प्रियंका, अर्चना चौहान, शीतल राना,गगन मित्तल गगन, अनुराधा सक्सेना, मुकेश साहू, धर्मेंद्र साहू, अमर साहू, राम शंकर वैद्यदिव्यांश आदि भक्तों ने आरती करके प्रसाद पाया।

 

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