बदायूँ : उझानी मे मेरे राम सेवा आश्रम पर एक माह तक चलने वाली श्री राम कथा महोत्सव नवें दिन रवि जी समदर्शी महाराज ने मनु शतरूपा की कथा सुनाई

उन्होंने कहा सृष्टि के आदि पुरुष मनु महाराज और सतरूपा जी स्त्री पुरुष के सहयोग से सृष्टि का आरंभ हुआ हम सब मनु महाराज के अंश हैं इसलिए मनुष्य कहलाए धर्मानुसार जीवन जीते हैं जिसके लिए एक नियम एक संविधान बनाया जिसे मनु स्मृति कहते हैं मनु महाराज के दो बेटे थे एक का नाम उत्तानपाद एक का नाम प्रियव्रत था।

उत्तानपाद के के ध्रुव जैसा पुत्र हुआ और प्री व्रत के देवहूति देव होती नामक कन्या का जन्म हुआ जिनके गर्व से कपिल भगवान का जन्म हुआ जिन्होंने सारे संसार को सांख्य शास्त्र दिया जैसा मनुष्य का निजी जीवन होगा वैसी संतति होती है हमारे जीवन में हर पल संस्कार चाहिए ताकि हमारे बच्चे लव कुछ ध्रुव पहलाद अनुसूया सावित्री सीता दुर्गा लक्ष्मी आदि बने बच्चों को शिक्षा संस्कार की आवश्यकता है मनु महाराज 1 दिन सोचने लगे जीवन पूरा बीत गया लेकिन कुछ कमी सी महसूस होती है वह कमी क्या है जिसने मुझे बनाया मैं उसे आज तक देख नहीं पाया और अंग गलने लगे हैं उड़ने लगा है दांत गिरने लगे हैं शरीर जर्जर हो रहा है क्या भगवान के दर्शन होंगे अचानक मन में विचार आया कि भगवान को प्राप्त करने के लिए सब कुछ छोड़ना होगा और उसी क्षण अपने बेटे को राज्य शॉप कर मनु और शतरूपा नेमीशरण में घने जंगल में नदी के किनारे स्नान करके तपस्या रथ हो गए साधना रथ हो गए हजरत हो गए इतनी भारी तपस्या की कि ऋषि मंडल आशीर्वाद देने आने लगा ऋषि यों ने द्वादश मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय जाप करने को दिया अखंड जाप करते रहे कुछ दिन बाद साग खाया वह भी छोड़ कर जल्दी कर तब करते रहे 10000 वर्ष तक भाइयों को आधार बनाया एक पैर पर खड़े रहे उनका शरीर हड्डियों का ढांचा हो गया पर मन में प्रभु मिलन की लगन तनिक भी पीड़ा नहीं देती आकाशवाणी हुई वरदान मांगे राजन क्या मानते हो क्या चाहिए जैसे ही आकाशवाणी का कान में सरगुजा शरीर ऐसा हो गया कि जैसे अभी महल से आए हैं हष्ट पुष्ट हो गए आनंदित हो गए खुश हैं भगवान से हाथ जोड़कर बोले आप अनाथ हो का कल्याण करने वाले प्रभु यह नेत्र आपके उस रूप का दर्शन चाहते हैं जिस रूप को भगवान शंकर अपने मन में बसा रखे हैं जिस रूप के दर्शन के लिए ऋषि मुनि यति सन्यासी भजन करते हैं सुमिरन करते कठोर तप करते हैं जो रूट कागज के मन में हंस के रूप में विराजमान है जो अगुण शगुन निर्गुण किसी भी रूप में जिनकी चर्चा होती है हम उसी रूप का जी भर के दर्शन करना चाहते हैं आप कृपा करें हम पर हमारी इच्छा पूरी करेंl

प्रातः की बेला है गोमती नदी का किनारा है कुटिया के बाहर नील कमल के समान नीलमणि के समान नीले मेघ के समान नीला वर्ण का प्रकाश पुंज करोड़ों काम देवों की सुंदरता को निश्चित करता हुआ ऐसे रूप शोभा की धाम भगवान विष्णु साक्षात प्रकट हो गए हम कौन हैं क्या है सब भूल गए राजन रानी जब ध्यान में आया साक्षात प्रभु सामने खड़े हैं और भगवान कहते हैं राजा जो चाहो सो माग लो राजा हाथ जोड़कर भोले आप कृपानिधि, दयानिधि हैं आप दुखियों के नाथ है,आप दान शिरोमणि हैं, मैं आपसे आप जैसा पुत्र चाहता हूं उनके प्रेम से भगवान गदगद हो गए और आशीर्वाद दे दिया एवं अस्तु ऐसा ही होगा बाद में ध्यान आया कि अपने जैसा कहां खोजें और कह दिया हे राजन जब तुम अयोध्या के राजा बनोगे तब हम आपके घर में पुत्र के रूप में आएंगे तब सतरूपा ने लक्ष्मी को अपने पुत्र वधू के रूप में मांगा तथास्तु कहकर भगवान वहां से चले गए l

भगवान की जन्म की एक और कथा सुनाएं के कई देश में सत्यकेतु नाम के बड़े धर्मात्मा तेजस्वी राजा रहते थे उनके बड़े बेटे का नाम प्रताप भानु छोटे का नाम अरिमर्दन और धर्म मूर्ति नाम का सचिव रहता था

सारा राज बड़े बेटे प्रताप भानु को सौंप कर राजा सत्यकेतु तपस्या करने चले गए 1 दिन प्रताप भानु शिकार खेलने गंभीरवन में घने वन में विंध्याचल में गए एक मर्द का एक सूअर का पीछा करते-करते रात हो गई रास्ता खो गई और सूअर का आखेट नहीं कर पाए

ब्यास व्याकुल राजा ने एक कुट्टी देखी कुटी में जाकर एक सन्यासी को देखा जो कपट मुनि था पूर्व में राजा था जिसका राज्य प्रताप भानु जीत चुके थे उसके पास पहुंचे और बड़ा सन्यासी जानकर प्रणाम किया अपना परिचय बताया कि मैं राजा प्रताप भानु का सचिव धर्म रूचि लेकिन उसने पहले ही पहचान लिया था और कहा यहां संत भगवान माता पिता इनके सामने कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए और मीठी मीठी बातें करके प्रताप भानु पर अपना प्रभाव जमा लिया प्रताप भानु को जल पिलाया स्वागत प्रेम किया और कहा राजन जो तुम्हें चाहिए मैं प्रदान कर सकता हूं राजा ने मारा मेरा शरीर कभी बूढ़ा न हो युद्ध में मुझे कोई जीत ना पाए एक छत्र मेरा राज्य को सात कल्पतरु ऐसा मुझे दीजिए, कपट मुनि एकतनु ने कहा यह सब होगा राजन चिंता ना करो पर तुम्हें एक काम करना होगा ब्राह्मणों को अपने बस में करना होगा राजा सोचने लगे ब्राह्मणों की तो वशीभूत हुआ जाता लेकिन लोग में अंधे हो गए हा,

एक तांत्रिक और अपने शक्ति के प्रभाव से रात्रि में राजन को घर पहुंचा दिया 3 दिन पश्चात वह कपट मुनि राजा के घर पहुंचा अपने निर्देशन मे खाना बनबाया और राजा से परसबाया वाया ब्राह्मणों को राजा ने खुद भोजन परोसा और एक तनु ने अपने सहयोगी के माध्यम से कपट पूर्ण आकाशवाणी की की है ब्राह्मणों इस भोजन को मत करना इसमें ब्राह्मणों का मांस नांदा गया है आपका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा ब्राह्मण सब उठकर खड़े हो गए क्रोध में आ गए और भगवान को धन्यवाद देने लगे हे प्रभु आपने हमारा धर्म बचा लिया और राजन को श्राप दे दिया तुमने राक्षसी व्यवहार किया है तुम परिवार सहित समाज सहित राक्षस बन जाओ एक माह में तुम्हारा पूरा परिवार नष्ट हो जाएगा और वही हुआ तब ईश्वर कब आकाशवाणी हुई यह ब्राह्मणों से आप सोच विचार कर नहीं दिया राजा प्रताप भानु का इसमें कोई दोष नहीं है उनके साथ छल किया गया है कुछ समय पश्चात एक तनु नाम का रूप धारी सन्यासी पूर्व राजा था उसने सही करके चढ़ाई की प्रताप भानु पर पूरे परिवार सहित प्रताप भानु मारा गया और

अगले जन्म में राजा प्रतापभानु रावण छोटा भाई अरे मर्दन कुंभकरण बना और सचिव जो धर्म रूचि था और केवल धर्म ब्राह्मण गाय संत इन्हीं को सताया इन्हीं का नुकसान किया

इस मेरे राम की कथा में यजमान के रूप में आशुतोष तोमर प्रबंधक उर्मिला जूनियर हाई स्कूल रहे l

कथा में अंजू चौहान कमलेश मिश्रा कामिनी तिवारी प्रियंका सोलंकी सहायता शर्मा अर्चना चौहान गुड्डी देवी मोना चौधरी राखी साहू सुनीता अनीता रवि प्रताप सिंह चौहान गिरीश पाल सिसोदिया विष्णु गुप्ता एडवोकेट शशांक हर प्रताप सिंह एडवोकेट डॉ सुशील कुमार रामाश्रय शर्मा भगवान स्वरूप शर्मा अरविंद शर्मा विकास चौहान राजू चौहान लोकेंद्र सिंह, उम्मेद सिंह कुशवाह, सत्त्यम,दीपेश कुमार गजेंद्र पंत,सौरभ राजावत आदि सैकड़ों राम भक्तों ने कथा सुन आरती प्रसाद प्राप्त किया।

 

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