बदायूँ : उझानी मे मेरे राम सेवा आश्रम पर पुरुषोत्तम मास में चलने वाली श्री राम कथा महोत्सव के 20वें दिन रवि जी समदर्शी महाराज ने वनवास कथा का मार्मिक वर्णन किया। जिसे सुनकर श्रोताओं के नेत्र सजल हो गए।
रवि जी समदर्शी महाराज ने सुनाया” जैसे ही कैकई ने दूसरा वरदान मांगा राजा दशरथ बोले देवी कोई मांगने की चीज है। कैकई बोली देना है दो नहीं देना है तो मत दो क्या भारत तुम्हारा बेटा नहीं है। राजा ने धैर्य रखते हुए कहते हैं देवी ऐसा अपराध मत कर ऐसे मत बोल मेरे भरत और राम यह दोनों दो आंखें हैं और राम तो मेरा प्राण देवी हाथ जोड़कर मैं तुमसे भीख मांगता हूं दूसरे वरदान में थोड़ा परिवर्तन कर दे वन की जगह गुरु आश्रम में रहने की अनुमति दे दे अगर मेरे राम ने कहीं पूछ लिया कि मुझे यह सजा किस लिए दी गई है तो मैं उसे आंख उठा कर देख भी नहीं सकता मुंह से क्या कहूंगा मेरे राम से या कौशल्या से कोई गलती हो गई हो तो मैं राम का पिता तेरे चरण पड़कर क्षमा मांगता हूं उसे क्षमा करते रानी मेरा जीवन तो राम के अधीन है मेरे प्राण राम के बिना नहीं रह सकते क्या तुम विधवा होना चाहती हो यह गरीब दशरथ तुझे प्राणों की भीख मांगता है मुझे श्यामा गाय समझकर प्राण दान दे दे रानी ने चेक कर कह दिया राजन सुन लो अंतिम बार कह देती अगर सुबह होते ही सूर्य निकलने से पहले राम मुनिवेश में वन को नहीं गए तो मैं सरयु में डूब कर अपना जीवन समाप्त कर दूंगी और अगर अपनी सत्य और अपने को अपयश से बचाना है तो राम को तुरंत वन में भेजिए हे राघव है कौशल्या मुझे क्षमा कहां मुझे राम के पास जाना चाहिए था कामी के पास आ गया भोली कौशल्या को मैं क्या उत्तर दूंगा अपने देवों को मानते हैं सूर्य भगवान से कहते हैं कि तुम उदित ही मत होना अगर तुम निकल आए तो मेरा राम चला जाएगा सुबह होते जब राजा महलों में नहीं मिले तब सुमंत के कैकई भवन में पहुंचे और मंथरा ने सुमंत्र को कोपभवन का रास्ता बता दिया सुमंत ने सुमंत्र ने राजा को बिहावल देखा भूमि पर पड़े देखा अस्तव्यवस्था हालत में रानी से पूछा महारानी यह हालात कैसे हो गई राजा साहब आप मुझे बताइए मुझे कल राजमहल में राज भवन में जवाब देना रानी कहती है रात भर राजा सोई नहीं है हे राम हे राम कहते हुए पूरी रात ना खुद सोए ना मुझे सोने दिया अब यह भगवान जाने क्या हुआ सुमन तुम ऐसा करो राम को बुला लो सुमंत दौड़ कर गए राम के कक्ष में राम को कहा राजा साहब ने तुम्हें अभी याद किया है जैसे ही भगवान ने को भवन की ओर प्रस्थान कर देखा महाराज की स्थिति नाजुक देखकर इससे पहले आज तक कभी किसी को इस हाल में देखा नहीं किसी को ना दिखाई दुखी देख ना परेशान देखा ना कोई सुन मेरे राम जी घबरा गए और बोले मां पिताजी के दुख का क्या कारण है एक बार मुझे बताओ मैं दुख दूर करने में देरी नहीं करूंगा तुमसे अधिक प्रेम करते हैं केवल यही कारण फिर भी क्या तब कहती है राजा ने मुझे दो वरदान देने को कहा था मुझे जो ठीक लगा वह मैंने मांग लिए एक में भारत को राज्य और दूसरे में तुम्हें वनवास 14 वर्ष का भगवान तो बहुत खुश हुए बोले मन आज आपने मेरे मन की बात कर दी जनानी का कर कहते हैं रघुवंश के राम की जननी तो आप कौशल्या है लेकिन जन-जन के राम की जननी शबरी के राम की जननी गिरी वास वनवासी गरीबों की राम की जननी राम राज्य की स्थापना की राम की जननी आज के कई बन गई मां वह पुत्र बड़ा भाग्यशाली होता है माता-पिता अपने वचनों को मोक्ष निकलने से पूर्व भी पूरा करने का प्रयास करता है माता-पिता को प्राण के समझता है और आवाज का राजा मेरा भारत बनेगा इससे अधिक प्रसन्नता मेरे लिए और क्या हो सकती है मेरा तो पहले हिट होने वाला है कैसा हिट की कई रहती है भगवान बोले सबसे पहले लाभ मुनि जनों के दर्शन होंगे उससे भी अधिक मुझे माता-पिता की आज्ञा का पालन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है मां पिता इतने दुखी क्यों है मुझे लगता है कोई और बात आप कुछ मुझसे छुपा रही है आपको मेरी शपथ इधर राजा उठे राघव राघव हे भगवान शंकर तुम तो दोनों की सुनते हो समस्त देवताओं को प्रणाम करके कहते हैं वही करना जो मेरा राम बना जा पाए राम राम यह कहकर फिर बेहोश हो गए भगवान जैसे ही सबको प्रणाम करके की कई भवन से बाहर निकले बनवास की खबर सारे नगर में फैल गई अवध में शक सा छा गया सुनते ही माता की गोद के बच्चे छूट कर गिर गए युवाओं ने त्वरण द्वारा तोड़ डालें आरती के दीपक बुझा दिए गए स्वागत माल तोड़कर पैरों से कुचल डालें सब राजा और कैकई को बुरा भला कहते हैं और कहते हैं हे प्रभु तुझे क्या दिखाना था क्या दिखा दिया क्या सुनना था क्या सुना दिया कोई कहता है राजा ने अच्छा नहीं किया विचार का निर्णय नहीं लिया एक कहता है विधाता का कोई दोस्त नहीं है फिर भी उन्होंने अमृत दिखाकर विश दे दिया इस पृथ्वी पर उसे पुरुष का जीवन धन्य है जिसका अच्छा सुनकर माता-पिता आनंदित होते हैं बेटे को माता-पिता अपने प्राणों की समान प्रिय है उसे बेटे के धर्म अर्थ काम और मोक्ष मुट्ठी में निवास करते हैं
जैसी मेरी राम जी ने मां को दिखा दोनों हाथ जोड़कर माता चरण में रखकर प्रणाम किया मां ने हृदय से लगा लिया बार-बार मुख सुनती हैं कहती है बेटा बहुत कमजोर हो गया कुछ खा ले राम जी कहते हैं मां आप तो कहती थी पिताजी ने मुझे युवराज बनाया है पिताजी ने मुझे राजा बना दिया राजा हां मां राजा बना दिया अच्छा पिता ने मुझे बन का राजा बना दिया बनकर आजा मां मुझे आशीर्वाद मां तो अचित हो गई थोड़ी देर बाद उठी मां मुझे जल्दी पिता का वचन पूरा करना है आपका आशीर्वाद चाहिए सुमंत्र के बेटे ने सारी घटना यथावत बता दी मां ने तुरंत कहा अगर पिता की आज्ञा होती तो मैं टल सकती लेकिन माता और पिता दोनों की आज्ञा है इसलिए जाओ बेटा 1 सैकड़ो अवध की समान तुम्हें प्रिया लगे अवध तो अभागी हो गई लेकिन बन सौभाग्यशाली है जहां तुम्हारे चरण पड़ेंगे जहां तुम रहोगे,
हम सबको अनाथ करके जा रहे हैं यह वार्ता सुन जानकी जी आ गई जानकी जी ने कहा प्रभु मैं भी साथ चलूंगी भगवान कहते हैं मां का ध्यान रखना पिता का ध्यान रखन मां जब मेरी याद करें तो पुरानी पुरानी कथाएं कहानी सुना कर उन्हें ढांढस बधाना जानकी जी कहती हैं केवल एक ही धर्म है मेरा और वह है, हे प्राणनाथ शरीर धन-घर पृथ्वी नगर और राज्य पति के बिना शोक युक्त है जैसे जल के बिना नदी प्राणों की बिना शरीर ऐसे ही पुरुष के बिना नारी होती है भगवान ने देखा की जानकी कहीं आत्महत्या ना कर ले इसलिए उन्हें आज्ञा दे दी, आकस्मिक लक्ष्मण जी आ गए और उन्होंने कहा मैं भी चलूंगा भगवान बोले माता-पिता का ध्यान कौन रखेगा कहते हैं मैं न माता को जानता हूं ना पिता को जानता हूं ना गुरु को जानता हूं मैं केवल आपको जानता हूं स्पष्ट कह दिया आप नहीं ले जाएंगे तो सरयू में समाधि ले लूंगा,भगवान घबरा गए बोले ठीक है मां से आज्ञा मांग कर आओ मुस्कुराते हुए मां के पास पहुंचे चरणों में माथा रख दिया मां भगवान और जानकी जी का परिचय कराती है बेटा तुम्हारा असली माता-पिता तो राम और जानकी तुम्हारी वजह से ही राम बन को जा रहे हैं कोई दूसरा कारण नहीं है मेरी वजह से बोले हां तुम शेष के अवतार हो पृथ्वी पर पाप का भार बढ़ गया है इसलिए तुम्हारे सर से भार कम करने करने के लिए राम बन जा रहे हैं इसलिए लखन सुन ले मेरे दूध की कसम है तुझे भगवान की सेवा में राग द्वेष रोष इच्छा मत करना सपने में भी यह वाधक ना बने सब प्रकार के विचारों को त्याग कर मन वचन से सीताराम की सेवा करना
लखन बोले मां तेरी सौगंध खाकर कहता हूं मैं 14 वर्ष सोऊंगा ही नहीं मां के नेत्र छल छला गए बोली बेटा तुमने मेरे दूध का फर्ज पूरा किया है सदैव सुखी रहे तीनों राजा दशरथ से आज्ञा लेने आते है दशरथ जी जानकी जी को लखन को बहुत समझते हैं दशरथ जी कहते हैं कभी-कभी मायके चली जाया करना 14 वर्ष की ही तो बात है राजा जनक क्या कहेंगे बेटी तुम बन को मत जाओ लेकिन जानकी नहीं मानती है तब सुमंत को बुलाकर रथ पर ले जाओ और गंगा स्नान कर कर वापस ले आना ऐसा कहकर राजा फिर बेहोश हो जाते हैं
छोड़ चले , छोड़ चले, छोड़ चले मेरे राम अयोध्या छोड़ चले ।
आज के दिन यजमान संभल निवासी रेखा रानी रही।
सभी भक्तों बिष्णु गुप्ता धीरेन्द्र सोलंकी प्रियंका सोलंकी, अंजू चौहान शीतल राणा कुशल प्रताप अनुराधा सक्सेना,ओमप्रकाश चौहान राजीव सिंह विकास चौहान अलंकार सोलंकी विष्णु गुप्ता डा प्रभाकर मिश्रा अमर साहू अमरदीप साहू ब्रह्मानंद कमलेश मिश्रा कामिनी तिवारी मोना चौधरी राखी साहू गुड्डी गुप्ता बाबू शाक्य धर्मपाल अरविंद शर्मा सहायता शर्मा मनी सक्सेना मोनी चाैहान लोकेंद्र गजेंद्र पंत ने आरती करके प्रसाद ग्रहण किया।