कोंच। वागीश्वरी साहित्य परिषद् की मासिक गोष्ठी श्री गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में नंदराम स्वर्णकार भावुक की अध्यक्षता एवं राजेशचंद्र गोस्वामी के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुई। संचालन संतोष तिवारी सरल ने किया। ओंकार नाथ पाठक द्वारा गाई गई मां वीणापाणि की वंदना गोष्ठी का शुभारंभ हुआ।
मुख्य अतिथि राजेशचंद्र गोस्वामी ने खुद को आध्यात्म से जोड़ते हुए रचना बांची ‘मेरा मैं मरा नहीं पर मरी भी नहीं मेरी आत्मा, इसीलिए विश्वास मुझको मिल जाएगा परमात्मा।’ कवि सुनीलकांत तिवारी ने प्रतीकों के माध्यम से मौजूदा चलन पर व्यंग पढा, ‘हो सकता है मेरे दर्द की उसको खबर न हो, वो आसमां है उसकी जमीं पर नजर न हो।’ ओंकार नाथ पाठक ने व्यंग्य पढा, ‘अगर आपकी पत्नी ज्यादा किच किच करे तो उठाओ अपनी चप्पल, अपने शरीर में फुर्ती लाओ और चप्पल पहन कर तुरंत भाग जाओ।’ अंतरराज्यीय मंचों के कवि भास्कर सिंह माणिक्य ने कविता पाठ किया, ‘मन का रावण मारिए हिय में राम उतार, सच कहता हूं आपसे महक उठेगा प्यार।’ मुन्ना यादव ने रचना पाठ किया, ‘ये जमीं किस तरह सजाई गई जिंदगी की तरफ बढाई गई, आइना देखकर ही बिगड़ बैठे हैं वो जब असली सूरत उन्हें दिखाई गई।’ नंदराम स्वर्णकार भावुक ने दशहरा पर्व को लेकर रचना बांची, ‘अन्याय पर न्याय की ये वेला आई है, बुराई पर अच्छाई ने ये जीत पाई है।’ संतोष तिवारी सरल ने दशहरा को समर्पित रचना बांची, ‘अच्छाई का वास हृदय में हो जाए कटुता का ही नाश हृदय से हो जाए, जिस दिन से हम मिलजुलकर खुशियां बांटें उस दिन से ही सफल दशहरा हो जाए।’ बुजुर्ग कवि आशाराम मिश्रा ने कविता पाठ किया, ‘बताओ कहां मिलेंगे श्याम, चरण पादुका लेकर सबसे पूछ रहे रसखान।’ राजेंद्र सिंह गहलौत रसिक ने कहा, ‘सिर उठाकर जीना सीखो बुजदिली को छोड़ दो, सामने अवरोध आए मार ठोकर तोड़ दो।’ अमरसिंह यादव ने रचना पाठ किया, ‘शब्दों की अहमियत बड़ा महत्व रखती है, छोटी सी हां ना जिंदगी बदल सकती है।’ इस दौरान चंद्रशेखर नगाइच मंजू, कृष्ण कुमार बिलैया, मुन्ना लोहे वाले, संतोष राठौर, राजू रेजा, गिरिधर सकेरे, रामकृष्ण वर्मा, नंदकिशोर, रामबिहारी सोहाने, अरुण कुमार वाजपेयी, सुरेंद्र यादव, संजू महाराज, रमन सक्सेना, लक्ष्मीनारायण पुजारी, कैलाश मिश्रा, रामबिहारी ठाकुर, माठू आदि मौजूद रहे।