झांसी। जिले की गोशालाओं में पशुओं को खिलाने के लिए जैविक खाद का प्रयोग कर हरे चारे का प्रबंध संचालक के साथ- साथ ग्रामीण भी कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें भारतीय चरागाह एंव चारा अनुसंधान संस्थान (आईजीएफआरआई) के वैज्ञानिकों ने प्रशिक्षण दिया है। गौशाला संचालकों के साथ ही अब पशुपालक भी उसका फायदा उठा रहे हैं। वे वैज्ञानिक तरीके से बाजरा नेपियर संकर घास उगाने के साथ ही दो कतारों के बीच खाली जमीन में दलहनी और तिलहनी फसलों को भी उगाकर अच्छा लाभ ले रहे हैं। आईजीएफआरआई के निदेशक डा. अमरेश चंद्रा ने बताया कि जिले में किसानों ने भी इसमें रुचि दिखाई है। इसके साथ ही अधिकांश गोशाला संचालकों को इससे जोड़ने का काम किया जा रहा है।
झांसी जिले में करीब15 गोशालाएं संचालित हैं जिनके संचालक पशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए हरा चारा प्रबंधन का प्रशिक्षण लेकर वैज्ञानिक तकनीक से चारा उत्पादन कर रहे हैं। इस समय सर्वाधिक उत्पादन नेपियर बाजरा हाइब्रिड का किया जा रहा है। कामधेनु गोशाला सकरार के संचालक प्रिंस जैन ने बताया कि इसकी खासियत यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद चार से पांच वर्ष तक इसका लाभ ले सकते हैं। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. विजय कुमार यादव ने बताया कि इस समय संस्थान रामराजा गोशाला, पाल कालोनी स्थित कान्हा गोशाला, रिछौर स्थित रामश्री गौशाला के संचालकों के साथ- साथ ग्रामीण पशुपालक भी इसमें रुचि दिखा रहे हैं। बताया कि वैज्ञानिक तकनीक से चारा उगाने के साथ ही किसान बीच की खाली जगह में दलहनी और तिलहनी जैसी व्यावसायिक फसलों को उगाकर दोहरा लाभ कमा रहे हैं। प्रधान वैज्ञानिक डा. प्रकाश नारायण द्विवेदी ने बताया कि प्रशिक्षण में किसानों को पहली बार जैविक खाद का प्रयोग करने की सलाह दी जा रही है ताकि वे कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकें। वैज्ञानिक डा. गौरेंद्र गुप्ता ने बताया कि पहली बार जैविक खाद का प्रयोग करने के बाद एक वर्ष तक किसानों को खेत में रासायनिक खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही नेपियर बाजरा हाइब्रिड को प्रत्येक 35 से 40 दिनों के अंतराल किसान पांच वर्ष तक कटाई कर सकते हैं।