धर्मेन्द्र चौधरी ब्यूरो
नौतनवा/महराजगंज : कोविड के कारण भारत-नेपाल के बाजार बंद होने से कईयों के रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं। जीविका चलाना मुश्किल है। मजदूर व भूमिहीन परिवारों की सबसे अधिक दुर्दशा है। कुछ ऐसी ही कहानी नौतनवा ब्लाक क्षेत्र के सोनू राजभर की है। पत्नी व दो बच्चे हैं। कोविड काल से पहले वह पंजाब के एक शहर में मजदूरी करता था। कोविड काल व लाकडाउन का सिलसिला चला तो वह अपने गांव चला आया। काम न मिलने से उसके जीविका के लाले पड़ गए। पूंजी भी नहीं थी। इस बीच उसने अपनी जीविका चलाने का एक स्थान खोजा। वह था भारत-नेपाल सीमा का नोमेंस लैंड का एक आवागमन पगडंडियों का रास्ता। जो कि सौनौली कोतवाली क्षेत्र के हरदी डाली गांव के पश्चिम में मौजूद है। नोमेंस लैंड न तो भारत का लाकडाउन व दुकान खोलने बंद करने का नियम लागू होता है और न नेपाल का। उसने 100 रुपया कर्ज लेकर वहीं जमीन पर ही खीरा व तरबूज को काट कर बेचने लगा। सुबह से लेकर देर शाम तक वह नोमेंस लैंड पर खीरा तरबूज बेंचता है और दिन का 300 से 400 रुपया कमा लेता है। इस कर्फ्यू काल में उसने नोमेंस पर एक रोजगार ढूंढ निकाला। सोनू का कहना है नोमेंस लैंड ने उसे नया जीवन दे दिया। नहीं तो वह व उसके परिवार भूखे मरने के कागार पर आ गए थे।