कोंच(जालौन): आजकल पितृपक्ष चल रहा है और नगर के निकटवर्ती तालाबों व सरोवरों पर लोग अपने पितरों का तर्पण करने के लिए जुट रहे हैं। सागर तालाब पर तर्पण करा रहे पं. विनोद द्विवेदी बताते हैं कि पितृपक्ष पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान ज्ञापित करने का महान पर्व है, हमारे स्मरण करते ही ये पितर हमारे समीप आ जाते हैं एवं तर्पण और श्राद्ध ग्रहण कर हमें वंशवृद्धि दीर्घायु और सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान कर वापस अपने लोक को लौट जाते हैं।

भारतीय संस्कृति में श्राद्ध की सनातन परंपरा है जिसके माध्यम से हम अपने पितरों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता ज्ञापित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि पितर धर्मराज से अनुमति प्राप्त कर हर वर्ष पितृपक्ष में मृत्यु लोक में हमें आशीर्वाद देने आते हैं। वे इस कालखंड में हमारे अति निकट होते हैं, वे अपनी संतानों से तृषा शांति के लिए तर्पण (जलदान) और क्षुधा शांति के लिए पिंडदान की अपेक्षा रखते हैं। धर्मशास्त्रों में पितरों की असंख्य संख्याओं में सात को प्रधान माना गया है, सुकाला, आंगरिस, सुस्वधा, सोम, वैराज अग्निष्वात  और बहिर्रष्द दिव्य पितर हैं। इनके अधिपति हैं आदित्य, रुद्र और बसु। राजा दशरथ की मृत्यु की सूचना मिलने पर भगवान राम ने मंदाकिनी के तट पर जाकर श्राद्ध एवं तर्पण संबंधी सभी वेदोक्त क्रियाएं संपन्न की थीं। बाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में वर्णित है ‘करि पितु क्रिया वेद जस वरनी’ भगवान श्रीकृष्ण ने तो अपने भांजे (सुभद्रा के पुत्र) अभिमन्यु तक का विधिवत श्राद्ध किया था। पितामह भीष्म जब नदी में अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे थे तभी उनके पिता ने हाथ बढ़ाकर उनसे सीधा पिंड दान मांग लिया, विचारोपरांत भीष्म ने पिंड उनके हाथ पर न रख कर कुशा पर रखा और पिता के चरणों में प्रणाम किया। ऐसा इसलिए किया कि यदि वे पिंड सीधा अपने पिता के हाथ पर रखते तो भविष्य में श्राद्ध करने वाले लोग उनका अनुसरण करते हुए अपने अपने पिता के हाथ पर ही पिंड रखने की चाहत रखते। इस विचार को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें कुशा पर पिंड रखना समीचीन लगा। अपने नीति मर्मज्ञ पुत्र के इस कृत्य और विचार से उनके गोलोकवासी पिता बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक मनुष्य पर ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण होते हैं, इन सभी ऋणों का शोधन होना ही चाहिए अतएव हम सभी को इस महालय पर्व में अपने पूर्वजों को श्रद्धा और भक्ति के साथ तृप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

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