लखनऊ । अब फेफड़ों के ट्यूमर पर सीधे और अधिक शक्ति के साथ वार करना संभव होगा। सीधे ट्यूमर पर रेडियोथेरेपी देने से ट्यूमर के आसपास की कोशिकाएं प्रभावित नहीं होंगी या बहुत कम होंगी, जिससे रेडियोथेरेपी का साइड इफेक्ट भी काफी कम होगा। इसके लिए संजय गांधी पीजीआइ के रेडियोथेरेपी विभाग के प्रो. जेके मारिया दास, डा. योगनाथन, प्रो.शालीन कुमार और आइआइटी कानपुर के डा. आशीष दत्ता ने विशेष प्लेटफार्म (प्रोग्राम) तैयार किया है, जिसका परीक्षण लंग कैंसर के मरीजों पर काफी उत्साहजनक रहा है। इस प्रोग्राम को 3डी रोबोटिक मोशन प्लेटफार्म नाम दिया गया है। इस सफलता को इंडियन कैंसर कांग्रेस, बेंगलुरु में प्रस्तुत किया गया, जहां इसे काफी सराहना मिली।

प्रो. मारिया दास ने बताया कि फेफड़ों के ट्यूमर की गति सांस लेने की प्रक्रिया के साथ होती रहती है। हर व्यक्ति में गति की दिशा अलग-अलग होती है। कोई निश्चित दिशा गति की नहीं होती है। ट्यूमर पर रेडिएशन देते समय गति के कारण रेडिएशन ट्यूमर के आलावा आसपास के कोशिकाओं पर पड़ती है। इन कोशिकाओं को बचाने के लिए हल्की मात्रा में रेडिएशन देनी पड़ती है, तब भी सेल प्रभावित होते हैं। हमारे पास ऐसी रेडिएशन मशीन थी, जिससे ट्यूमर पर सीधे वार संभव था, लेकिन हर मरीज में अलग-अलग गति होती है और मशीन कितना सही काम कर रही है, यह पुष्टि नहीं हो पा रही थी। इस परेशानी से निजात पाने के लिए हम लोगों ने आइआइटी कानपुर के डा. आशीष दत्ता के साथ कार्ययोजना तैयार की। डा. दत्ता ने पूरा प्रोग्राम बनाया। हम लोगों ने मरीजों का सीटी डाटा दिया, जिसके आधार पर तैयार प्लेटफार्म का मरीजों पर परीक्षण किया गया।

लंग कैंसर मरीज का सीटी डाटा किया जाता है फीड : 

लंग कैंसर के मरीज का 4डी सीटी स्कैन करने के बाद ट्यूमर की स्थिति को तैयार किए गए प्लेटफार्म (प्रोग्राम) में फीड किया जाता है। यह प्लेटफार्म ट्यूमर के गति के साथ काम करता है, जैसे सही निशाना मिलता है रेडिएशन मशीन सीधे ट्यूमर पर रेडिएशन डालती है। इससे अधिक मात्रा में रेडिएशन देना भी संभव होता है। इस तकनीक का मरीजों पर भी परीक्षण किया गया, जिससे अच्छे परिणाम मिले हैं। यह प्लेटफार्म डिपार्टमेंट आफ साइंस एंड टेक्नोलाजी के सहयोग से तैयार किया गया है।

 

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