संजय शर्मा
बदायूं । बदायू क्लब द्वारा पिछले छः दिन से चल रहेअमृत महोत्सव सप्ताह के अन्तर्गत राष्ट्रराग कार्यक्रम में छठे दिनआज़ादीऔरआज का भारत विषय पर विचारगोष्ठी का आयोजन क्लब सभागार में हुआ।

गोष्ठी के मुख्य वक्ताशिक्षाविद् डॉ. बैकुण्ठनाथ शुक्लरहे।उन्होंने मां सरस्वती के समक्ष दीपप्रज्जवलित कर एवं पुष्ठअर्पित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। पदाधिकारियों द्वारा उनका पट्का पहनाकर एवं प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सम्मान किया गया।तदुपरान्त गोष्ठी प्रारम्भ हुयी।गोष्ठीमेंडॉ. बैकुण्ठनाथ शुक्ला ने कहा, किप्रत्येकदेश की संस्कृतिउसकेमानसिक, शारीरिक एवंआर्थिकप्रत्येक क्षेत्र मेंउपयोगीसिद्ध होतीहै इस लिए संस्कृति का विकास एवंसम्मानहोने ने से एक स्वस्थसमाज, वातावरणउत्तपन्नहोताहैकिन्तुभारत की संस्कृतिको इस लोग ही तिरस्कार कर रहे हैं जोकि अग्रिमविकास के लिए घातक हैं।कलाकार आयेन्द्रप्रकाश ने कहा, कि इस वर्ष अमृत महोत्सव के अवसर पर सभी भारत वासियों में एक अलग उत्साह नज़रआ रहा है यह उत्साह बना रहना चाहिए क्योंकि हम बहुत जल्द भूल जातेहै, चाहें वो शहीदों का बलिदानहो, उनके परिवारों का त्याग हो यह जरुरी है कि हम पुराने इतिहास का ध्यानमें रख आगे कार्य करें।राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे एवं वर्तमान में दास कालिज के क्रीड़ाअधिकारी प्रिन्स दीक्षित ने कहा, आज़ादी किसी दल, सरकार, देश से मुक्ति पा समानान्तर सरकार, दल, का परिवर्तन नहीं है बल्कि वह मानसिकता से भी सम्बन्धित है, हम आज़ाद तो हुये है पर मानसिक गुलाम आज भीहैं। यही कारण है कि अंग्रेज भले ही भारत से चलेगयेहैंपरवेअपनेसंस्कार भारत छोड़ गये और हम लगातार उन्हें अपना रहेहैं।अतः हमेंआत्म विश्लेषण कर एक मजबूतऔर स्व निर्भर राष्ट्र बनाना होगा। शायर शम्स बदायूंनी ने कहा, भारत बहुतआगे बढ़ा वैश्विक स्तर पर भी किन्तु उसके खुद के बनाये समाज में नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट आयी है। हम लगातार सरकार, व्यवस्था आदि का दोषा रोपित करते रहते हैं किन्तु खुद की गलतियों को नहीं मानते । इस अवसर क्लब के सचिवडॉ. अक्षतअशेष ने कहा, कि स्वछन्द होना आज़ादी नहीं है आज़ादी अनेक तत्वों का सामूहिक निष्कर्ष है जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिकता, सांस्कृतिक अनेक प्रकार से सम्बन्ध रखता है, 75 वर्षों में देश खूब बढ़ा है पर यह भी सच है यहां के लोगों को मानसिक पतन बहुत हुआ है। हम घर में बंटे, मुहल्लों में बटे, नगरों में बंटे, प्रदेश में बंटे, जाति में बटें, धर्मों में बंटे बटते बटते दिलों से ही अलग हो गये।साहित्यकार रविभूषण पाठक ने कहा, स्वतंत्रता को अक्षुण्य रखने के लिए उसको बाळय एवं आंतरिक चुनौतियों से सुरक्षित रखना होगा । भारतीय गणतंत्र के दीर्ध जीवन के लिए सामरिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक मोर्चे पर लम्बे और सतत संघर्ष की जरुरत है।गोष्ठी में नरेशचन्द्र शंखधार, सुमित गुप्ता, सुशील शर्मा, राजीव भारती, प्रशांत दीक्षित, इकबाल असलम, ने विचारव्यक्तकिया।संचालन सांस्कृतिक सचिव रविन्द्रमोहन सक्सेना ने किया।सुमित मिश्रा ने आभार व्यक्त किया।
