भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जिसको स्थापित हुए 75 वर्ष बीत गए । इस अंतराल में लोकतंत्र ने अपने जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं। लोकतंत्रिक मूल्यों को ध्वस्त करने के लिए राजनैतिक क्षेत्र में बढ़ते अपराधीकरण की प्रवृत्ति ही जिम्मेदार हैं । चुनावी मर्यादाओं या लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ साथ अपराधी राजनीतिक क्षेत्र को भी तार तार करते हैं ।

प्रत्याशी जिस दल में आस्था रखकर चुनाव जीतता है जीतने के बाद लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ साथ राजनीतिक मूल्यों को भी ध्वस्त करते हुए राजनीतिक दल के प्रति आस्था भी खत्म करते हुए लाल बत्ती की गाड़ी या अन्य लालच में पार्टी को छोड़ देता है । यह राजनेता के दोहरे चरित्र का प्रतीक है। इसका प्रजा को खामियाजा भुगतना पड़ता है। प्रजा जिस प्रत्याशी पर भरोसा करके उसे जीत दिलाई है वह प्रजा के भरोसे को भी तोड देता है। वह उस दल को सपोर्ट करते हैं जिसको प्रजा नहीं चाहती है। ऐसा कई राज्यों में क ई बार देखने को मिला है।

वर्तमान में चुनाव के क्षेत्र में सुधार अत्यंत आवश्यक है क्योंकि चुनाव प्रक्रिया इस समय इतनी लचर और सिथल है कि बड़े बड़े अपराधी भी चुनाव जीत जाते हैं । कुछ अपराधी लोग तो जेल में से ही चुनाव जीत जाते हैं। यही कारण हैं जहां वर्ष 2004 में 24% सदस्य लोकसभा में दागी चुने गए थे वहीं 2009 में यह संख्या बढ़कर 30% हो गई थी 2014 में 543 सदस्यों में से 185 लोकसभा सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि के चुनकर आए हैं अर्थात 34% सदस्य दागी चुने गए थे । ताज्जुब की बात तो वर्ष 2019 में देखने को मिली जब 2019 की लोकसभा में 43% आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग चुनाव जीते अर्थात कमोवेश 50% दागी प्रत्याशियों के साथ कैसे दावा कर सकते हैं कि कार्य जनहित में होंगे लोक कल्याण में होंगे और देश के विकास के लिए होंगे । दागी उम्मीदवार या सदस्य का दोहरा चरित्र है जो कि देश व जनता के हित से ज्यादा निजी स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं। इसलिए आज महंगाई चरम सीमा पर है ,बेरोजगारी तीव्र गति से बढ़ती जा रही है और कुपोषण में भारत सर्वोच्च स्थान पर है। महंगाई बेरोजगारी और कुपोषण को देखते हुए लगता है देश में सरकार शून्य हैं क्योंकि यदि एक्टिव सरकार होती तो आज कमर तोड महंगाई, बेलगाम अपराध और कुपोषण में भारत शीर्ष पर न होता।

सरकार फ्री लैपटॉप, फ्री गिफ्ट ,फ्री /मुफ्त में धन , फ्री राशन , फ्री पानी , फ्री बिजली देकर लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ खिलवाड़ कर रही है । प्रश्न यह है कि सरकार फ्री सुविधाएं देने के लिए धन किन स्रोतों से लेकर आ रही है ? वह जनता के सामने स्पष्ट करना चाहिए। क्या वह धन जनता का नहीं है ? या जनता द्वारा टैक्स के माध्यम से संग्रह किया गया धन नहीं है ? क्या यह धन किसानों से लगान द्वारा, नौकरी करने वाले लोगों से टैक्स द्वारा, व्यापारियों से जमा टैक्स द्वारा इकट्ठा किया गया धन है?

सरकार यदि आम जनता की गाढ़ी कमाई को फ्री के नाम से बर्बाद कर रही है? यदि हां तो वास्तव में न तो जनता का भला हो रहा है और नहीं लोकतांत्रिक मूल्य सुदृढ़ हो रहे हैं सिर्फ सरकार और उसके नुमाइंदों के अनैतिक मूल्य सद रहे हैं। सरकार को यह बताना होगा के फ्री लैपटॉप ,फ्री राशन, फ्री बिजली ,फ्री पानी या फ्री गिफ्ट पर जो धन खर्च हो रहा है वह किस् मद से वह व्यय किया जा रहा है ? कहीं जनता से टैक्स/ लगान या अन्य माध्यमों से इकट्ठा किया हुआ धन तो नहीं यदि है तो फिर फ्री किस बात का। यह तो एक प्रकार से जनता को राहत की बजाय उसे धोखे में रखने वाली बात है। देश की न्यायपालिका को संज्ञान लेना चाहिए कि यदि जनता का पैसा है तो फ्री स्कीम के नाम पर सरकार चंद्र व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने पर खर्च करती है तो यह सरासर नाइंसाफी है आम नागरिकों के साथ धोखा है।

आज देश की घटिया राजनीति के चलते हैं राज नैतिक मूल्य धरातल में जा पहुंचे हैं। आवश्यकता है घटिया राजनीति से देश को उभारने की क्योंकि घटिया राजनीति से न तो देश का भला होगा न आम लोगों का पर चंद लोगों का स्वार्थ जरूर सिद्ध होगा । जो दोहरी राजनीति या चरित्र का घोतक है।

जेएम लिंगदोह पूर्व निर्वाचन आयुक्त का मानना है कि चुनाव के लिए आने वाला ज्यादातर फंड भारत में खजाने की लूट से आता है और इसे हमें रोकना होगा। सरकार बनते ही वह सिंचाई विभाग जैसे बजटीय प्रावधानों पर हमला करते हैं। टी एन सेशन का मानना है कि मुझे राजनेताओं से नफरत नहीं है मुझे घटिया राजनीति से नफरत है ।

हर चुनाव में आम आदमी के साथ खड़े होने के बायदे किए जाते हैं गरीब के साथ हैं दिखाने की होड़ मच जाती है लेकिन क्या हमारे राजनेता वाकई गरीबों की परवाह करते हैं जब देश आजाद हुआ था तब गरीब कल्याण के खूब वादे किए गए लेकिन यह वायदे पूरी तरह से साकार नहीं हुए एक हिसाब से साल 2019 में लोकसभा के लिए चुने गए सांसदों की औसत कमाई भारतीयों की कमाई की तुलना में 1400 गुना ज्यादा है। चुने जाने से पहले और चुने जाने के बाद भी राजनेताओं की कमाई बढ़ जाती है । चौदहवीं लोकसभा 2004 में सांसदों की औसत आयु 1.9 करोड़ रुपए थी जो अगले कार्यकाल में बढ़कर 5.6 करोड़ रुपए हो गई। 16 वीं लोकसभा 2014 -2019 में यह आंकड़ा ₹13करोड‌ हो गया और अब 17वीं लोकसभा 2019से 1924 में यह आंकड़ा लगभग ₹16 करोड़ है। अर्थात सांसदों की आय में अभूतपूर्व प्रगति या वृद्धि क्या उनके अनैतिक माध्यमों का परिणाम नहीं है? नियम सभी के लिए एक समान होना चाहिए।

देश की चुनी हुई सरकार, निर्वाचन आयोग और न्यायपालिका यदि चाहें तो राजनीत से आपराधिक प्रवृत्ति को दूर किया जा सकता है। इसके लिए न्यायपालिका,चुनाव आयोग और चुनाव से जुड़ी हुई समस्त एजेंसियों को सक्रिय और पारदर्शी नीतियों के साथ आगे बढ़ना होगा। अपनी अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। नीतियों और नीयत में एकरूपता स्थापित करनी होगी।

भारतीय चुनाव आयोग को ऐसे नियम या कानून तैयार करने चाहिए कि अपराधों में संलिप्त किसी भी व्यक्ति को यदि प्रत्याशी बनाया जाता है तो उसकी उम्मीदवारी निरस्त की जानी चाहिए । न्यायपालिका को भी आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों के केसों में तीव्रता दिखानी चाहिए उसे सरकार, सत्ता या प्रभावशाली राजनीतिक दल से भयभीत हुए बिना निष्पक्ष फैसले सुनाने , दोषी पाए जाने पर उन्हें किए गए अपराध के अनुसार दण्ड मिलना चाहिए। अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों क्षेत्र चुनाव लडने से रोका जाए।

यदि भारत में न्यायपालिका, चुनाव आयोग और संबंधित एजेंसियां अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय होकर निष्पक्ष और पारदर्शी नीतियों के साथ आगे बढ़ते हैं और समय के साथ काम करते हैं तो निसंदेह देश की राजनीत से ही अपराध खत्म नहीं होगा बल्कि देश से भी अपराध का सफाया हो जायेगा। निष्पक्ष राजनीति शुरू हो जाएगी। देश में सामाजिक लोकतंत्र स्थापित होने के बाद ही देश में व्याप्त अंधविश्वास अंदर आस्थान और आडंबर समाप्त हो सकते हैं समानता स्वतंत्रता और वह तत्व की भावना विकसित की जा सकती है जब समाज में सभी लोग समान होंगे स्वतंत्र होंगे और भाई चारे के साथ रह रहे होंगे तब देश में वास्तविक रूप में लोकतांत्रिक मूल्य मजबूती के साथ स्थापित हो सकेंगे। फिर अपराधी अपने निजी घर जेल में बंद होंगे। आदमी पर नाजायज दवाब नहीं पड़ेगा।आम आदमी, खास आदमी और समाज के साथ साथ देश प्रगति की राह पर दोडने लगेगा। देश प्रगति के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगा।

अतः आज आवश्यकता है सरकार , न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायका के साथ-साथ चुनाव आयोग और संबंधित एजेंसियां अपनी अपनी नीतियों में निष्पक्षता और पारदर्शिता लाएं , नीति और नीयत में एकरूपता या समानता स्थापित करें फिर न रहेगा अपराधी और न रहेगा अपराध। देश प्रगति की राह पर आगे बढ़ेगा। सामाजिक लोकतंत्र स्थापित होने के बाद ही आम और खास आदमी भी सकून में होगा। महंगाई, बेरोजगारी, कुपोषण, अपराध, शोषण जैसे तत्व भी भूमिगत हो जायेंगे।

लेखक

सत्य प्रकाश

प्राचार्य

डॉ बी आर अंबेडकर जन्म शताब्दी महाविद्यालय धनसारी अलीगढ़।

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