बदायूं अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन नामक अन्तर्राष्ट्रीय  संस्था के ”एआईपीसी बदायूँ अध्याय ,बदायूँ के वेनर तले संस्था का 23वाँ स्थापना दिवस चन्द्रशील नगर निकट जवाहरपुरी पुलिस चौकी स्थित  शरद मोहन माहेश्वरी की आवासीय व्यवस्थांतर्गत हर्षोल्लास से मनाया गया।

सर्वहिताय और नारी उज्जागरण के लक्ष्य को ले घरों से निकाल,सड़ी- गली वर्जनाओं को दूर कर कलावन्त नारियों को खुला आकाश  और मंच देने वाली ये संस्था राष्ट्रीय स्तर से प्रारम्भ होकर अपने चार पांँच वर्ष के जीवन काल से ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के क्षितिज को छूने लगी थी। तब से आज तक अविरल ये पर्यटन और मंचीय कार्यक्रमों के माध्यम से हर क्षेत्र में नारी लेखन,नारी शिक्षा आदि विशद उद्देश्यों को वरीयता देती रही है । इसी हित ‘संस्था एआईपीसी  बदायूंँ अध्याय ,जिला बदायूँ उत्तर प्रदेश* में भी कलावन्त बहनों को मंच देने व खुल कर अपनी बात कह-सुन सकने हेतु ‘कवयित्री-सम्मेलन’ का गठन किया गया है। इस सम्मेलन में 22 वरिष्ठ स्थापित और लेखिनी के साथ सफर करने  का साहस रखने वाली सभी कवयित्रियों को मंच प्रदान कर कार्यक्रम का आगाज़ किया गया है।

सौभाग्य से  आज के कार्यक्रम संरक्षक व अध्यक्षता निर्वहित करने वाले नगर बदायूँ के जाने माने वरिष्ठ शिक्षाविद् साहि त्यकार आद.डॉ रामबहादुर व्यथित और विशिष्ट अतिथि बने 181 पुस्तकों के रचयिता डॉ.इसहाक तवीब साहब।

तीन भागों में बटे इस कार्यक्रम के प्रथम भाग का प्रारम्भ हुआ आमंत्रित जन के अभिनन्दनीय सत्कार से और समापन माँ वाणी- विनायक के दीप प्रज्वलन माल्या र्पण,मन्त्रोच्चारित पूजन,अर्चन- वन्दन से। डॉ.व्यथित ,डॉ.तवीब ने दीप प्रज्वल्लन माल्यार्पण किया। साथ में रहे श्रीयुत शरद माहेश्वरी,(80पुस्तकों की लेखिका- ममता नौगरैया , कुलभूषण डॉ.सौनरूपा ,स्वकर्मफल से बनी असि. प्रोफे,डॉ.शुभ्रा माहेश्वरी ,कविकुल प्राप्त रम्परा से जुड़ी असि. प्रो.डॉ.निशि अवस्थी आदि।

माँ वाग्देवी की वन्दना प्रस्तुत की

सुनीता मिश्रा Aipc सदस्या ने ।

अभिनन्दनीय सत्कार रोली चन्दन अक्षत,वैज तथा पुष्प,और पुष्प माला आदि से किया संस्था पेटर्न शरद मोहन माहेश्वरी,सदस्य -गहना माहेश्वरी,पर्व माहेश्वरी और सुनीता देवी आदि ने।

द्वितीय भाग में आबाल-वृद्ध ज्ञान विषयक विषयों पर लेखिनी चलाने वाले डॉ.तवीब साहब की 181वीं पुस्तक ‘अनेकार्थी-शतक’ और ‘महिला-शतक’का विमोचन डॉ व्यथित जी व प्रोफे.डॉ.कमला

माहेश्वरी कमल के कर कमलों द्वारा किया गया ।

कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य व उद्देश्य नारी को सशक्त बनाना है के मद्देनजर- नारी सशक्तिकरण, सामाजिक-समरसता,प्रेम व विश्व -शान्ति’विषय ही काव्य प्रस्तुति चुने

गये ।

अब पटल संचालिका कमला माहेश्वरी ने एआईपीसी का परिचय देते हुए बनाया कि ‘रजि.संस्था 987 के संस्थापक प्रोफे.डॉ.लारी आजाद जी ने नगरी खुर्जा में नारी – उज्जागरण के उद्देश्य को लेकर 30 अप्रैल 2000 (नव सदी) के अवसर पर पूरा एक कारवाँ साथ ले जिसमें पद्मश्री और ज्ञानपीठ धारी साहित्यकाराओं राज्यपालों ,सांसदों, राज्यों और राज्य मंत्रियों ,फिल्मी विभूतियों विद्वानों विदुषी कवयित्रियों आदि को साथ ले स्थापित की थी ,जो अब विराट बन चुकी है। ये संस्था अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ-साथ ₹150000 की राशि 60 संकटग्रस्त , निर्बल,अनाथ विधवा महिलाओं और कवयित्रियों के आचार- विचार और योग्यता को देखकर पुरस्कृत करती है।

इसके साथ ही साथ एक त्रैमासिक पत्रिका ‘कालजयी’ तथा शोध पत्रिका जे एच एस एस ( JHSS) का संपादन संबद्ध माला प्रकाशन अलीगढ़ तथा अन्य से किया जाता है इसका आवंटन लगभग 20-22 देशों में होता है  ।

अब पटल को और रसमयी बनाने हेतु काव्यधारा का प्रवाह बहाया गया । उपस्थित सभी कवयित्रीयों ने एक से बढ़कर एक कविताओं के नगीने प्रस्तुत किए वहांँ न कोई छोटा था और न कोई बड़ा।सब समान रहे ।इस तरह काव्य धारा का प्रारंभ –

सरिता चौहान की प्रेम भक्ति भरी पंक्तियों से हुआ ।

“शबरी की कुटिया में चलकर के आएंगे ।जीवन पथ-संचालन स्वयं सिखायेंगे।

जो पर पीड़ा देख द्रवित हो जाता है,

उस अंतस ही राम तुम्हें दिख जाएंगे ।।”

नारी के प्रति सामाजिक विकृतियों पर कटाक्ष करते हुए डॉ सौनरूपा ने कहा-

“आप हस्ताक्षर करें अस्तित्व पर,

क्या स्वयं को मैं तभी स्वीकृत करूंँगी ।

आत्म विश्लेषण रखूंँगी जब कभी पर, क्यों किसी की पंक्तियांँ उद्धृत करूंँगी ।।”

अध्यक्षीय पद से यद्यपि डॉ राम बहादुर व्यथित ने नारी पीड़ा विषयक रचनाएं भी पढीं पर जैसा  कि उनका तेवर है उस तेवर के अनुसार कहा-

खून से भीगी कोई कहानी लिखो।

शहीदों के जोश-ए-जवानी लिखो ।

न्याय ऐसा लिखो न्याय सा जो दिखे ,

झूठ को झूठ सच की कहानी लिखो ।।

विशिष्ट अतिथि पद से नारी पीड़ा का एहसास महसूस करते हुए डॉ तबीब ने कहा –

“एक अंधेरी कोठरी ,है उसका आवास। बाहर फैली धूप का नहीं जिसे विश्वास।।”

संचालिका डॉ कमला माहेश्वरी कमल भी नारी के प्रति समाज में विघटित होते मूल्यों, प्रताड़नाओं,और अतिचार आदि से दुखी हो नारी अस्मिता की पहचान करा लताड़ लगाते हुए कहती हैं –

“रिश्तों की पूँजी सरल,तरल सुधा रस दाय।

हो जिस विधि सुख शान्ति घर,करती वही उपाय ।।

नारी है युग-साधना,नवचेतन आधार ।

बन्द करो अतिचार ये,भरे राष्ट्र हुंकार ।।”

नारी पीड़ा का गहनतम गान गाती हुई सुनीता मिश्रा भी कहती हैं

“डूब जाए समुंदर भी,उदासी इतनी गहरी है । मरुस्थल फिर भी आंँखों में तेरी हमको नजर आए। है सांँसों में वही खुशबू ,वही अंदाज है जीने का, दख़ल तेरी वफ़़ाओं में फ़कत हमको नजर आए।

डॉ.शुभ्रा माहेश्वरी भी नारी पीड़ा की सघनता को हृद्तल से महसूस करती नित तिल-तिल मरती नारी का दिग्दर्शन कराती हुई कहती हैं –

“वक्त की लेखिनी ने लिखा जिसे मैं वह कागज हूंँ। बेबसी की स्याही से लिखा जिसे मैं वह कागज हूंँ।मेरी ज़िन्दगी एक पुस्तक ही बनी रही अब तक ,जिस पर मौत ने हस्ताक्षर किए जिसे मैं वह कागज हूंँ।।”

नारी गुणों का गान और प्रेरणा प्रदान करती हुई डॉ निशि अवस्थी कहती हैं –

“ममता दया क्षमा की पिटारी यही नारी । खल-कंठ काटने की कटारी यही नारी।

ये हर तरह से देश का उत्थान करेगी,

गौरव भरे ये काज भी महान करेगी ।।

इसी तरह डॉ सरला चक्रवर्ती भी नारी को प्रेरणा देती हुई कहती हैं-

“आया समय जगो तुम नारी,अब इतिहास तुम्हें रचना है। आज़ादी की नई गूँज में,नव आयाम तुम्हें गढ़ना है ।।”

पिया मिलन की चाह में तुलसी बनी राजनेत्री श्रीमती सीमा चौहान कहती हैं कि

“धूल कण कुछ अँगन की जमीं रोप कर, सोचती पास मेरे बसे हो पिया ।

पौध तुलसी बनी हैरती आपको,

जी सकूँ इस तरह साथ तेरे पिया।।

डॉ.गार्गी बुलबुल सामाजिक समरसता से भरा हिंदुस्तान बनाना चाहती हुई आवाज लगाती हैं –

“मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा,इनका हो सम्मान। वैशाखी ईद दिवाली सब है एक समान ।एक रहे हैं एक रहेंगे ये हमको समझाना है, एक भारत श्रेष्ठ भारत,भारत हमें बनाना है।

डॉ प्रतिभा मिश्रा नारी के अवदान की चर्चा करते हुए कहती हैं कि दीपक की बाती भाँति जला स्वयं को भस्म कर लेती है फिर भी नाम श्रेय दीपक का ही होता है इस व्यथा से व्यथित हो वे कह  उठती हैं –

“नारी शक्ति के स्वरूप को क्या कोई समझ पाएगा।बाती जली दे रोशनी फिर भी ‘दिया ‘ कहलाएगा ।।

डॉ शिखा पाण्डेय नारी जीवन के निरर्थकता बोध से पीड़ित हैं, कहती हैं –

“एक लड़की का जीवन नदी के दो किनारे हैं । समझ न पाते उम्र भर यह हमारे हैं या वह हमारे हैं ।।”

इसीलिए डॉ शिल्पी शर्मा असि. प्रोफे.समाज से सीधे लड़ना चाहती हैं ,सीधी बात करते हुए कहती हैं –

हारेंगे मिलकर रो लेंगे पर युद्ध सघन सीधा होगा । फिर कोई बेटी ना रोए जीवन मधुमय गर्वित होगा ।।

डॉक्टर सविता चौहान के विचार देशभक्त से संबंध है वे कहती हैं युग युग ने गौरव गान किया मर्दानी लक्ष्मीबाई का । बलिदान सदा ही अमर रहे बलिदानी लक्ष्मीबाई का।

कवियत्री श्रद्धा सारस्वत का चिंतन देश भक्ति और प्रेम से जुड़ा है उन्हें लोलुपता स्वीकृत नहीं ।इसीलिए वे निर्भय हो कटु शब्दों में कहती हैं –

रणबेदी की शर्त यही है तीर लक्ष्य पर मारा जाए। जो शत्रु सी बात करें वो सार्वजनिक ललकारा जाए ।ऐसे कैसी है मजबूरी, कैसी है पद की लोलुपता, प्रेम करें विध्वंसक जन से देशभक्त दुत्कार आ जाए ।।

यही संवेदनाएं कुछ वीर वाला सिंह की है वे भी ऐसा ही जोश लिए कहती हैं –

“मत पूछो भारत की कन्या रण में कैसे जाएगी। वक्त पड़ा तो दुश्मन के मस्तक को काट के गिराएगी । क्षुधित शेरनी झपट पड़ी तो स्वान मौत मर जाएगा, चूर चूर हो जाएगा जो, भारत से टकराएगा ।। ”

इसके अतिरिक्त श्रीमती प्रमिला गुप्ता श्रीमती दीप्ति गुप्ता डॉ, ममता नौगरिया गहना माहेश्वरी, छवि माहेश्वरी ,पर्व माहेश्वरी ,शरद मोहन माहेश्वरी ,श्रीमती भारती गुप्ता ,दिशा गुप्ता सत्य प्रकाश जी गुप्ता आदि ने भी अपनी रचनाएं। और  विचार पटल पर रखे और अथक सहयोग दिया।

इसके अतिरिक्त नीव में दवे पत्थर दिखते तो नहीं पर सर्वाधिक बोझ वही उठाते हैं उन सभी का भी मैं कमला माहेश्वरी आभार अभिव्यक्त करती हैं।

अंत में अध्यक्षीय उद्बोधन और राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ ।

 

 

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