लखनऊ, एजेंसी एक साल बाद प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं के परिसरों में फिर से स्मार्ट मीटर लगाने की मंजूरी दे दी गई है। यह स्मार्ट मीटर प्रीपेड होने के साथ 4जी संचार तकनीकी पर आधारित होंगे। प्रदेश में अभी तक 2जी या 3जी तकनीकी पर आधारित स्मार्ट मीटर लगाए गए थे। उधर उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने कहा है कि इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी का भुगतान करने वाले बिजली उपभोक्ताओं से स्मार्ट मीटर के बहाने पिछले दरवाजे से जीएसटी भी वसूलने की तैयारी है जिसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा।

उप्र पावर कारपोरेशन व बिजली कंपनियों ने लगभग तीन साल पहले प्रदेश में 40 लाख स्मार्ट मीटर लगाने का ठेका ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी केंद्र सरकार की चार कंपनियों के संयुक्त उपक्रम एनर्जी एफिशियंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) को दिया था। ईईएसएल ने प्रदेश में लगभग 12 लाख स्मार्ट मीटर लगाए थे। हालांकि, लगाए गए स्मार्ट मीटर में मीटर तेज चलने, लोड जंपि‍ंग व बत्ती गुल होने की शिकायतें भी मिल रही थीं। पिछले साल जन्माष्टमी के अवसर पर प्रदेश के लगभग पांच लाख उन घरों की बत्ती गुल हो गई, जिनमें स्मार्ट मीटर लगे थे। मामले के तूल पकडऩे पर पिछले साल 31 अक्टूबर को प्रदेश में स्मार्ट मीटर लगाए जाने पर रोक लगा दी गई थी। अब पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक पंकज कुमार ने ईईएसएल को पत्र लिखकर प्रदेश में फिर से 4जी संचार तकनीकी पर आधारित प्री-पेड स्मार्ट मीटर लगाने के लिए कहा है। इस शर्त के साथ कि प्री-पेड स्मार्ट मीटर लगाने से बिजली गुल होने की शिकायत न मिले और उपभोक्ता हितों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

पावर कारपोरेशन के इस फैसले पर उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने यह कहते हुए सवाल उठाया है कि पहले लगे स्मार्ट मीटरों में जो खामियां मिली थीं, उनके लिए दोषी संस्था के विरुद्ध क्यों नहीं कार्यवाही की गई? यह भी प्रश्न किया है पहले लगे 12 लाख स्मार्ट मीटरों को कब तक 4जी तकनीकी में परिवर्तित किया जाएगा?

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के मुताबिक ईईएसएल आठ साल की अवधि के लिए हर माह 85.95 से रुपये मीटर की कैपिटल कास्ट के तौर पर पावर कारपोरेशन से वसूलता है। साथ ही, इस पर 18 प्रतिशत जीएसटी की दर से 15.47 रुपये हर माह वसूलता है। केंद्र सरकार ने टेंडर की गाइडलाइंस में व्यवस्था है कि कैपिटल कास्ट और जीएसटी के रूप में वसूली जाने वाली इस राशि को वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) में शामिल किया जाए। इससे यह बोझ अंतत: उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *