बदायूं:
*हिन्दी के उत्थान एवं प्रचार प्रसार में बहुमूल्य योगदान रहा है बदायूं के साहित्यकारों का, जनपद की साहित्य विरासत को अक्षुण्य बनाये रखने में खास योगदान है बदायूं क्लब संस्था का*
सूफी, संतो, कवियों एवं शायरों की सरज़मी कही जाने वाली बदायूं की साहित्यिक उर्वरा से देश-विदेश में जनपद की ख्याति पहुंची है। हिन्दी साहित्य ने एक से बढ़कर एक नगीनों ने हिन्दी भाषा के परचम को विश्व स्तर पर अत्यन्त गरिमा के साथ बढ़ाया है। आज हिन्दी दिवस के अवसर पर ऐसे साहित्यकारों का नाम प्रमुख रुप से लिया जाये तो उनमें निश्चित रुप से प्रमुख रुप से राष्ट्रकवि स्व. ब्रजेन्द्र अवस्थी एवं राष्ट्रीय गीतकार स्व. डॉ. उर्मिलेश जिन्होंने हिन्दी कवि सम्मेलनों के मंच और अपनी साहित्य साधना से जनपद का नाम प्रसिद्ध किया। आज जब भी बदायूं में हिन्दी की यात्रा का नाम लिया जाता है तो इन दोनों हस्तियों का नाम सर्वप्रथम गौरव के साथ याद किया जाता है। डॉ. अवस्थी ने अपनी 3 दर्जन से अधिक प्रकाशित पुस्तकों के माध्यम से विभिन्न विधाओं में हिन्दी साहित्य में योगदान दिया है, दास कालिज के हिन्दी विभागाध्यक्ष के रुप में भी अपनी सेवा देकर शिक्षा के माध्यम से भी हिन्दी की अलख जगाई। सुप्रसिद्ध कवि डॉ. उर्मिलेश ने हिन्दी काव्य मंच एवं लेखन दोनों म अपनी श्रेष्ठता साबित की उन्होंने हिन्दी की विभिन्न विधाओं ने लेखन कर अनेक प्रसिद्ध कृतियों का प्रकाशित कर साहित्य व हिन्दी प्रेमियों के लिए सौगात दी और मंच पर अपनी ओजपूर्ण वाणी से हिन्दी भाषा के प्रसार और प्रचार का बल दिया। उन्होंने साथ ही बदायूं क्लब के माध्यम से क्लब में स्थापित अंग्रेजी कल्चर को समाप्त कर हिन्दी भाषा के विकास के लिए कार्य किया, उन्होंने हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देते हुए अनेक आयोजनों का सम्पन्न कराया, जो आज भी उनके पुत्र व युवा कवि अक्षत अशेष निर्बाध रुप से चला रहे हैं। हिन्दी ग़ज़ल के बड़े साहित्यकार स्व. बलवीर सिंह रंग भले मूलतः एटा जिले के थे किन्तु उनकी साहित्य साधना का मूल केन्द्र बदायूं ही रहा। भाषा वैज्ञानिग के रुप प्रसिद्ध स्व. मंगलदेव शास्त्री बदायूं की ही देन थे। दिवंगत हुये जनकवि रहे पंण्डित भूपराम शर्मा, व्यंग कवि डॉ. मौहदत्त साथी, काका देवेश, हिन्दी ग़ज़ल शायर चन्द्रप्रकाश दीक्षित, शायर घनश्याम निशि के साथ उनके बाद भी प्रख्यात गीतकार गीतकार नरेन्द्र गरल, व्यंगकवि टिल्लन वर्मा, समीक्षक डॉ. रामबहादुर व्यथित, केदारनाथ यजुर्वेदी घट, शमशेर बहादुर आंचल, प्यारेसिंह यादव, महेश मित्र, डॉ. अवधेश पाठक, श्रीपाल सिंह, उमाशंकर राही, डॉ. उपदेश शंखधार, सुरेन्द्र नाज़, डॉ. शैलेन्द्र कबीर, कमला माहेश्वरी, शुभ्रा माहेश्वरी, कुलदीप अंगार, दुर्गेश नंदन वशिष्ठ, अनिल रस्तोगी, विनोद सक्सेना, विनोद सूर्यवंशी, मुन्ने सिंह आंचल, गीतम सिंह, गीतांजलि सक्सेना, सतीश चन्द्र शर्मा सुधांशु, शामियाना संग्रह के सम्पादक अशोक खुराना, डॉ. इसहाक तबीव, चन्द्र प्राल सिंह सरल, ममता नौगरिया, अरविंद धवल, विनीत जौहरी, गुरुचरण मिश्र जैसे अनगिनत नाम जिन्होंने हिन्दी की किसी ना किसी रुप में सेवा की है और आज भी कर रहे हैं। नयी पीढ़ी की अगर बात करें तो उसमें प्रमुख रुप से भारत शर्मा, कुमार आशीष, विशाल गाफिल, गत वर्ष मुख्यमंत्री द्वारा हरवंशराय बच्चन युवा हिन्दी ग़ज़लकार सम्मान से सम्मानित डॉ. सोनरुपा विशाल, शुभ्रा माहेश्वरी, निशि अवस्थी, भूराज सिंह, डॉ. अक्षत अशेष, मुकेश कमल, प्रदीपरायजादा विशाल, डॉ. आनंद मिश्र अधीर, कमल तिवारी, विष्णुगोपाल अनुरागी, पवन शंखधार, आशीष वशिष्ठ, अभिषेक अनंत, आदित्य तोमर, पुष्पराज यादव, शट्वदन शंखधार, आदर्श समय, कामेश पाठक, अजीत सुभाषित, आशीष शर्मा, उज्जवल वशिष्ठ, शिल्पी रस्तोगी, डॉ. दीप्ति जोशी, जैसे युवा कलमकार हिन्दी के परचम को बखूबी थामे हुये हैं। कभी अंग्रेजी कल्चर के लिए प्रसिद्ध की जाने वाली संस्था बदायॅंू क्लब आज हिन्दी और उसके उत्थान के लिए लगातार प्रयासरत हैं। संस्था के माध्यम से हिन्दी भाषा और साहित्य के उत्थान के लिए क्लब के सचिव डॉ. अक्षत अशेष द्वारा प्रतिवर्ष हिन्दी सेवियों का सम्मान और हिन्दी भाषी विभिन्न पत्र पत्रिकाऔं जैसे बदायूं महोत्सव स्मारिका उन्मेष, बदायूं जनपद का समग्र इतिहास के प्रकाशन, अपने पिता स्व. डॉ. उर्मिलेश के नाम बेबसाइट की स्थापना, हिन्दी प्रेमियों के लिए नगर के रेलवे स्टेशन एवं ब्राहम्ण धर्मशाला में पुस्तकालय की स्थापना, साहित्यपत्र साहित्यगंधा में प्रकाशन सहयोग एवं समय-समय पर विभिन्न हिन्दी गोष्ठियों एवं सम्मेलनों का आयोजन उनकी हिन्दी के प्रति अगाध श्रद्धा को प्रदर्शित करता है। इसके साथ,-साथ संस्कार भारती, स्मृति वंदन, आदि अनेक साहित्यिक संस्थायें लगातार ऐसे आयोजनों द्वारा हिन्दी के प्रसार के लिए तत्पर हैं। कुल मिलाकर आज भले महानगरो की चकांचौध, आधुनिकीकरण में हिन्दी को वह स्थान नहीं मिल रहा जिसकी वो हकदार है किन्तु बदायूं जैसे छोटे किन्तु जमीनी शहर में आज भी हिन्दी और हिन्दी को सम्मान देने वालों की कमी नहीं।