बदायूँ शिखर सम्वाददाता
एटा । जिला कृशि रक्षा अधिकारी मनोज कुमार ने यह जानकारी देते हुये बताय है कि निदेषक गेहूँ विकास निदेषालय भारत सरकार, कृशि एवं किसाना कल्याण मंत्रालय गुरूग्राम हरियाणा द्वारा प्रदेष में छिट-पुट वर्शा के कारण तापमान मेे कमी एवं आर्दता में वृद्धि होने के कारण पीला रतुआ एवं करनाल बन्ट रोग के प्रकोप की संभावना के दृश्टिगत निम्नलिखित सुक्षाव एवं संस्तुतियों को कृशको के मध्य व्यापक प्रचार प्रसार कराया जाये।
उन्होनें बताया कि पीला रतुआ-सामान्यतया पीला रतुआ के प्रकोप हेतु 06 से 18 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान एवं 90 प्रतिषत से अधिक आद्रता के साथ-साथ बादलीयुक्त मौसम अनुकूल होता है। प्रायः इस रोग का प्रकोप जनवरी और फरवरी माह में दिखाई देता है। रोग का प्रकोप होने पर पीले से नांरगी रंग के यूरेडियोस्पोर धारियों के आकार में पत्तियों पर पाउडर के रूप में दिखाई पडते है जिसे हाथ लगााने पर हाथों में पीला पाउडर चिपक जाता है। यह रोग खेत में 10-15 पौधो पर गोल घेरे के रूप में षुरू होकर बाद में पूरे खेत में फैलता है। पीला रतुआ से बचाव हेतु नाइट्रोजन युक्त उवर्रको का प्रयोग अधिक नहीं करना चाहिये। तथा प्रकोप के लक्षण परिलक्षित होने पर प्रोपिकोनाजोल 0.1 प्रति0 अथवा टेबुकोनाजोल 50 प्रति0$ट्राइफलाक्सीस्ट्राविन 25 प्रति0 डब्लू0जी0 0.06 प्रति0 का घोल बना कर 15 दिन के अन्तराल पर छ्रिडकाव करना चाहिये।
करनाल बन्ट- करनाल बन्ट बीज एवं भूमि जनित रोग है इस बीमारी से न तो पौधो की सभी बालियां और न ही बालियों में सभी दाने प्रभावित होते है। इसकी पहचान खेत में नही हो पाती हैै और ज्यादातर मामलों में फसल की कटाई और थ्रसिंग के बाद ही दिखाई पडती है। इसके प्रकोप की दषा में गेंहू की बालियों एवं दानों पर काले के पाउडर के रूप में टेलियोस्पोर चिपके रहते हैं। इसका प्रसार हवा द्वारा तेजी से होता है ठंडा तापमान, उच्च आर्दता एवं रूक-रूक कर होने वाली बारिस रोग के विकास को बढावा देती है। यदि बीते वर्शाे में इस रोग का संक्रमण रहा हो और मौसम रोग संक्रमण के अनुकूल हो तो फूल अवस्था के दौरान यथासंभव सिचाई नही करनी चाहिये। गेहू की पुश्पावस्था में तापमान में गिरावट एवं अधिक आर्दता होने की स्थिति में बालियां निकलते समय प्रोपिकोनाजोल 0.1 प्रति0 का सुरक्षात्मक छिडकाव करना चाहिये।
उन्होंने कहा कि किसान भाई खेत की नियमित निगरानी अवष्य करते रहें। कीट/रोग का प्रकोप होने पर तुरन्त उपचार करें ऐसा होने पर फसलों में क्षति होने से बचाया जा सकता है। (अधिक जानकारी हेतु अपने विकासखण्ड पर स्थापित राजकीय कृशि रक्षा इकाई पर सम्पर्क करें।) ध्यान रहे दवा का छिडकाव जब मौसम साफ हो तभी करें, अगर वर्शा का संदेष हो तो मौसम साफ होने की प्रतीक्षा करें।
