आज सोमवार, 8 नवंबर से छठ पूजा व्रत शुरू हो रहा है। इस दिन नहाय-खाय है, मंगलवार को खरना होगा। बुधवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और गुरुवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर ये व्रत पूरा होगा। ये पर्व बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में काफी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। इन प्रदेशों के साथ ही भारत के अन्य क्षेत्रों में भी कई लोग ये पर्व विधि-विधान के साथ मनाते हैं।

कोलकाता की एस्ट्रोलॉजर डॉ. दीक्षा राठी ने बताया कि बंगाल में भी काफी लोग ये व्रत करते हैं। छठ पूजा 10 तारीख को मनाया जाएगा। ये पर्व सूर्य भगवान और षष्ठी माता को समर्पित है। इस पर्व की खास बात व्रत करने वाले भक्त करीब 36 घंटों तक निर्जल रहते हैं, यानी पानी भी नहीं पीते हैं।

मान्यता है कि छठ माता जो अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं, लेकिन जो लोग इस व्रत में कोई गलती कर देते हैं, उनका व्रत खंडित हो जाता है और छठ माता की कृपा नहीं मिल पाती है।

पहले दिन होता है नहाय-खाय

ये पर्व कुल 4 दिन का होता है। इसमें सूर्य भगवान को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। व्रत के पहले दिन नहाय-खाय का होता है। इस दिन नमक वर्जित होता है। व्रत करने वाला स्नान के बाद शुद्ध होकर नए वस्त्र धारण करता है। लौकी की सब्जी और चावल खासतौर पर चूल्हे पर पकाते हैं, पूजन के बाद प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।

दूसरे दिन होता है खरना

दूसरे दिन खरना होता है, इस दिन सूर्यास्त के बाद गाय के दूध की खीर बनाई जाती है। पीतल की हांडी में ये खीर बनाते हैं। जब व्रत करने वाला व्यक्ति ये खीर ग्रहण करता है, उस वक्त अगर थोड़ी सी भी आवाज हो जाए तो वह भक्त वहीं रुक जाता है और फिर खीर ग्रहण नहीं करता है। इसलिए जब भी व्रत करने वाला खरना का पालन कर रहा होता है, तब कोई भी आवाज आसपास नहीं की जाती है। इसका विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है।

तीसरे दिन शाम को देते हैं अर्घ्य

​​​​​​​तीसरे दिन शाम को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह से व्रत करने वाला निराहार और निर्जल रहता है। प्रसाद ठेकुआ बनाता है और अर्घ्य के समय सूप में फल, केले की कदली और ठेकुआ भोग के रूप में रखकर सूर्य भगवान को अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद व्रत करने वाला पूरी रात निर्जल रहता है।

चौथे दिन सुबह दिया जाता है अर्घ्य

चौथे दिन यानी सप्तमी तिथि की सुबह सूर्योदय के समय सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर अपने व्रत का पारण करता है। इस अर्घ्य के साथ व्रत पूरा होता है।

यह व्रत बहुत ही कठिन होता है, इसके नियम भी काफी सख्त हैं। निष्ठा से और नियम से जो इस व्रत का पालन करता है, उसे छठ माता की कृपा मिलती है और उसके जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।

 

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