पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पौष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस साल 13 जनवरी, गुरुवार को ये पुत्रदा एकादशी तिथि है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी, वैकुण्ठ एकादशी और मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

संतान सुख के लिए होता है ये व्रत
मान्यता है कि इस दिन व्रत से भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने पर निस्संतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में इस व्रत की महिमा बताई गई है, जिससे योग्य संतान की कामना पूर्ण होती है। सिर्फ संतानहीन ही नहीं अपितु इस व्रत को करने से संतान वाले साधकों की संतान को हर परेशानी से मुक्ति भी मिलती है और घर में धन-धान्य की किसी प्रकार की कमी नहीं रहती है व सदैव सुख-शांति रहती है।

व्रत पूजा सामग्री
श्री विष्णु जी व बाल कृष्ण का मूर्ति या चित्र, फूल, फल, मिठाई, अक्षत, तुलसी दल, नारियल, सुपारी, लौंग, चंदन, धूप, दीप, घी और पंचामृत

एकादशी व्रत-पूजा विधि
इस पूजा में भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की भी पूजा भी करनी चाहिए, ताकि बाल कृष्ण सी सुयोग्य संतान की प्राप्ति हो। सुबह सूर्योदय के साथ स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा में व्रत का संकल्प लें और बाल कृष्ण के साथ भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। पूजा में भगवान को पीला फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि अर्पित करें। दंपति एक साथ व्रत का संकल्प लें और व्रत का पूजन करना चाहिए।

कथा सार
पौराणिक कथा के अनुसार भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नामक राजा था उसके यहां कोई संतान नहीं थी। भटकते-भटकते दुखी राजा, विश्वदेव मुनियों के सानिध्य में पहुंचा जहां उसे पुत्रदा एकादशी का महत्व पता चला और इस व्रत को कर उसे सुयोग्य संतान की प्राप्ति हुई थी।

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