आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा है। इस तिथि पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। प्राचीन समय में इसी तिथि पर महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। इनकी जयंती के अवसर पर ही गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। वेद व्यास अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं यानी इनकी कभी मृत्यु नहीं होगी, कभी वृद्ध नहीं होंगे और हर युग में जीवित रहेंगे।

महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। इनका पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है। माता सत्यवती के गर्भ से जन्म लेते ही वेद व्यास युवा हो गए थे और तप करने चले गए थे। इनके पिता महर्षि पाराशर थे। वेद व्यास ने द्वेपायन नाम के एक द्वीप पर तप किया था। तप की वजह से इसका रंग श्याम हो गया। इसी वजह से इन्हें कृष्णद्वेपायन कहा जाने लगा।

वेद व्यास ने ही वेदों का संपादन किया था। इसलिए इनका नाम वेद व्यास पड़ा। महाभारत जैसे श्रेष्ठ ग्रंथ की रचना भी इन्होंने ही की थी, और गणेशजी ने महाभारत लिखी थी।

पैल, जैमिन, वैशम्पायन, सुमन्तु मुनि, रोमहर्षण आदि महर्षि वेदव्यास के महान शिष्य थे। वेद व्यास की कृपा से ही पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ था।

गांधारी को दिया था सौ पुत्रों की माता होने का वरदान

महाभारत के अनुसार एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर गए। वहां गांधारी ने उनकी बहुत सेवा की। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर महर्षि ने उसे सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद गांधारी गर्भवती हुई, लेकिन उसके गर्भ से मांस का गोल पिंड निकला। गांधारी उसे नष्ट करना चाहती थीं। ये बात वेदव्यासजी को मालूम हुई तो वे गांधारी के पास पहुंचे और कहा कि वह 100 कुंडों का निर्माण करवाए और उसे घी से भर दें। इसके बाद महर्षि वेदव्यास ने उस पिंड के 100 टुकड़े कर उन्हें अलग-अलग कुंडों में डाल दिया। कुछ समय बाद उन कुंडों से गांधारी के 100 पुत्र उत्पन्न हुए। ये 100 पुत्र ही कौरव कहलाए।

 

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