ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहते हैं। इस बार अपरा एकादशी 5 और 6 जून को रहेगी। लेकिन विद्वानों के मुताबिक व्रत और पूजा 6 जून को ही करनी चाहिए। महाभारत, नारद और भविष्यपुराण में बताया गया है कि अपरा एकादशी का व्रत और पूजन करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। साथ ही मनोकामनाएं भी पूरी होती है।
एकादशी तिथि कब से कब तक
इस बार ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की अपरा एकादशी तिथि 5 जून, शनिवार को सूर्योदय से पहले ही यानी सुबह करीब 4 बजे ही शुरू हो जाएगी। फिर अगले दिन यानी 6 जून, रविवार को सूर्योदय के बाद तकरीबन साढ़े 6 बजे तक रहेगी। पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र और काशी के प्रो. रामनारायण द्विवेदी का कहना है कि जब एकादशी तिथि दो दिन तक सूर्योदय के समय रहे तो दूसरे दिन ये व्रत-पूजा और स्नान-दान करना चाहिए।
एकादशी तिथि शुरू: 05 जून, शनिवार को सुबह 04.10 से एकादशी तिथि खत्म: 06 जून, रविवार को सुबह 6.30 तक
महाभारत में बताया गया ये व्रत
महाभारत में बताया गया है कि पांडवों ने अपरा एकादशी की महिमा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से सुनी थी। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में इस व्रत को करके महाभारत युद्ध में विजय हासिल की थी। इस एकादशी व्रत को करने से कई यज्ञों का फल भी मिलता है। इस तिथि पर भगवान त्रिविक्रम यानी वामन देवता की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है।
आरोग्य देने वाली अपरा एकादशी
अपरा एकादशी का व्रत ज्येष्ठ महीने के विशेष फल देने वाले व्रतों में एक माना गया है। इस व्रत से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है। इस दिन नियम और विधि से भगवान की स्तुति करने से सुख-समृद्धि मिलती है और हर तरह के संकटों से भी मुक्ति मिलती है। इस व्रत के प्रभाव से दुश्मनों पर जीत मिलती है। साथ ही आरोग्य भी मिलता है।