इस बार पंचांग की गणना में भेद होने से तिथियों की घट-बढ़ हो रही है। जिससे कार्तिक महीने खास तीज-त्योहारों की तारीखों को लेकर भी भेद हो गया है। देव प्रबोधिनी एकादशी के बाद अब बैकुंठ चतुर्दशी व्रत भी दो दिन किया जा रहा है। देश के कई हिस्सों में 17 नवंबर तो कहीं 18 को ये पर्व मनाया जाएगा। इस पर्व पर हरि-हर मिलन यानी भगवान शिव और विष्णुजी की औपचारिक मुलाकात करवाने की परंपरा है। जो कि रात में होती है। इसलिए कई जगहों पर चंद्रमा के उदय होने के वक्त चतुर्दशी तिथि में ये पर्व 17 नवंबर को ही मनाया जा रहा है।
क्या है हरि-हर मिलन की परंपरा
स्कंद, पद्म और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव और विष्णुजी का मिलन करवाया जाता है। रात में दोनों देवताओं की महापूजा की जाती है। रात्रिजागरण भी किया जाता है। मान्यता है कि चातुर्मास खत्म होने के साथ भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागते हैं और इस मिलन पर भगवान शिव सृष्टि चलाने की जिम्मेदारी फिर से विष्णु जी को सौंपते हैं। भगवान विष्णु जी का निवास बैकुंठ लोक में होता है इसलिए इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी भी कहते हैं।
पूजन और व्रत विधि
इस दिन सुबह जल्दी नहाकर दिनभर व्रत रखने का संकल्प लें।
दिनभर बिना कुछ खाए मन में भगवान के नाम का जप करें।
रात में कमल के फूलों से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद भगवान शंकर की भी पूजा करें।
पूजा के मंत्र
ऊँ शिवकेशवाय नम:
ऊँ हरिहर नमाम्यहं
रात भर पूजा करने के बाद दूसरे दिन फिर शिवजी का पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। इसके बाद खुद भोजन करना चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी का ये व्रत शैवों और वैष्णवों की पारस्परिक एकता एकता का प्रतीक है।