ग्रंथों के मुताबिक हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी मनाई जाती है।इस बार कालाष्टमी बुधवार 2 जून को है। इस दिन शिवजी के रुद्र स्वरूप भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। काल भैरव के 8 स्वरूप माने गए हैं। इनमें से बटुक भैरव की पूजा गृहस्थ व अन्य सभी भैरव भक्तों द्वारा इस विशेष तिथि के मौके पर की जाती है, जो बेहद ही शुभफलदायी और मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली होती है। बटुक भैरव स्वरूप को सौम्य स्वरूप माना गया है। काल भैरव के भक्त साल की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं।

नारद पुराण में कालाष्टमी

नारद पुराण के मुताबिक कालाष्टमी पर काल भैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इस रात देवी काली की भी विशेष पूजा का विधान है। शक्ति पूजा करने से काल भैरव की पूजा का पूरा फल मिलता है। इस दिन व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए। इस व्रत के दिन कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है।

इस व्रत से दूर होते हैं रोग

कालाष्टमी पर्व शिवजी के रुद्र अवतार कालभैरव के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं और काल उससे दूर हो जाता है। इसके अलावा व्यक्ति रोगों से दूर रहता है। साथ ही उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

कुत्ते को खाना खिलाने की परंपरा

भगवान भैरव का वाहन कुत्ता होता है, इसलिए इस दिन कुत्ते को पेटभर खाना खिलाने से विशेष फल मिलता है। ऐसा करने से भगवान भैरव खुश होते हैं और सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं। माना जाता है कि कालाष्टमी के साथ ही हर दिन कुत्ते को खाना खिलाना चाहिए। ऐसा करने से बुरा समय दूर होता है और परेशानियां भी खत्म होने लगती हैं।

कालाष्टमी व्रत से खत्म होता है डर

मान्यता के मुताबिक, इस दिन व्रत और पूजा करने से भय से मुक्ति मिलती है और परेशानियां आने से पहले ही दूर हो जाती हैं। इसके साथ ही रोगों से भी मुक्ति मिलती है। जो आपराधिक प्रवृत्ति वाले होते हैं उनके लिए भगवान भैरव, दंडनायक होते हैं। वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। इनकी पूजा करने से नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।

 

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