अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव अष्टमी मनाई जाती है। इस दिन काल भैरव की विशेष पूजा और आराधना की जाती है। इस बार काल भैरव अष्टमी 27 नवंबर को मनाई जाएगी। काल भैरव का जिक्र पौराणिक ग्रन्थों में मिलता है। शिव पुराण के मुताबिक काल भैरव भगवान शिव का रौद्र रूप है। वामन पुराण का कहना है कि भगवान शिव के रक्त से आठों दिशाओं में अलग-अलग रूप में भैरव प्रकट हुए थे। इन आठ में काल भैरव तीसरे थे। काल भैरव रोग, भय, संकट और दुख के स्वामी माने गए हैं। इनकी पूजा से हर तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।

पुराणों में बताए गए हैं 8 भैरव
स्कंद पुराण के अवंति खंड के मुताबिक भगवान भैरव के 8 रूप माने गए हैं। इनमें से काल भैरव तीसरा रूप है। शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि शाम के समय जब रात्रि अगमन और दिन खत्म होता है। तब प्रदोष काल में शिव के रौद्र रूप से भैरव प्रकट हुए थे। भैरव से ही अन्य 7 भैरव और प्रकट हुए जिन्हें अपने कर्म और रूप के अनुसार नाम दिए गए हैं।

आठ भैरवों के नाम

  1. रुरु भैरव 2. संहार भैरव 3. काल भैरव 4.. असित भैरव 5. क्रोध भैरव 6. भीषण भैरव 7. महा भैरव 8. खटवांग भैरव

काल भैरव पूजा से दूर होती हैं बीमारियां
भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला या भय को जीतने वाला। इसलिए काल भैरव रूप की पूजा करने से मृत्यु और हर तरह के संकट का डर दूर हो जाता है। नारद पुराण में कहा गया है कि काल भैरव की पूजा करने से मनुष्‍य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्‍य किसी रोग से लंबे समय से पीड़‍ि‍त है तो वह बीमारी और अन्य तरह की तकलीफ दूर होती है। काल भैरव की पूजा पूरे देश में अलग-अलग नाम से और अलग तरह से की जाती है। काल भैरव भगवान शिव की प्रमुख गणों में एक हैं।

 

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