गणेश चतुर्थी पर मिट्टी के गणेश ही स्थापित करने चाहिए, क्योंकि ग्रंथों में मिट्टी को पवित्र माना गया है। जानकारों का कहना है कि कलयुग में मिट्टी की प्रतिमा को ही ज्यादा महत्व बताया गया है। ऐसी मूर्ति में भगवान गणेश के आवाहन और पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मिट्टी की मूर्ति में पंचतत्व होते हैं इसलिए पुराणों में भी ऐसी प्रतिमा की पूजा का ही विधान बताया गया है।

मिट्टी के गणेश ही क्यों
शिवपुराण का कहना है कि देवी पार्वती ने पुत्र की इच्छा से मिट्टी का ही पुतला बनाया था, फिर शिवजी ने उसमें प्राण डाले थे। वो ही भगवान गणेश थे। शिव महापुराण में धातु की बजाय पार्थिव और मिट्‌टी की मूर्ति को ही महत्व दिया है। मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की पूजा करने से कई यज्ञों का फल मिलता है। आचार्य वराहमिहिर ने भी अपने ग्रंथ बृहत्संहिता में पार्थिव या मिट्टी की प्रतिमा पूजन को ही शुभ कहा है।

कौन सी और कहां की मिट्टी
लिंग पुराण का कहना है शमी या पीपल के पेड़ की जड़ की मिट्टी से मूर्ति बनाना शुभ है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार गंगा और अन्य पवित्र नदियों की मिट्टी से बनी मूर्ति की पूजा करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। जहां से भी मिट्टी लें, वहां चार अंगुल यानी तकरीबन ढाई से साढ़े 3 इंच का गड्डा खोदकर, अंदर की मिट्टी लेकर भगवान गणेश की मूर्ति बनानी चाहिए। इस तरह बनाई गई मूर्ति में भगवान का अंश आ जाता है।

कितनी बड़ी और कैसे बनाएं गणेश प्रतिमा
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र कहते हैं कि समरांगण सूत्रधार और मयमतम जैसे ज्योतिष ग्रंथों में बताया गया है कि घर में 12 अंगुल यानी तकरीबन 7 से 9 इंच तक की मूर्ति होनी चाहिए। इससे उंची प्रतिमा घर में नहीं होनी चाहिए। वहीं, मंदिरों और सार्वजनिक जगहों पर मूर्ति की उंचाई से जुड़ा कोई नियम नहीं बताया गया है।

कैसे बनाएं प्रतिमा: मिट्‌टी को इकट्‌ठा कर के साफ जगह रखें। फिर उसमें से कंकड़, पत्थर और घास निकाल कर मिट्‌टी में हल्दी, घी, शहद, गाय का गोबर और पानी मिलाकर पिण्डी बना लें। इसके बाद ऊँ गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए गणेशजी की सुन्दर मूर्ति बनाएं। ऐसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने से उसमें भगवान का अंश आ जाता है। मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की पूजा करने से करोड़ों यज्ञों का फल मिलता है।

कैसी हो गणेशजी की मूर्ति
गणेश जी की मूर्ति लाल रंग की होनी चाहिए। जो गजमुखी यानी हाथी के मुंह वाली हो। उसमें तीन आंखे, चार हाथ और पेट बड़ा हो। गणपति का दायां दांत पूरा और बायां वाला टूटा होना चाहिए। प्रतिमा में नाग की जनेउ होनी चाहिए। जांघें मोटी और घुटने बड़े हो। उनका दायां पैर मुड़ा हुआ और बायां नीचे की तरफ निकला हुआ होना चाहिए। सूंड वामावर्त यानी बाईं ओर मुड़ी होनी चाहिए। उनके एक दाएं हाथ में अपना टूटा दांत हो और दूसरे दाएं हाथ में अंकुश होना चाहिए। बाईं तरफ के एक हाथ में रुद्राक्ष की माला और दूसरे में मोदक से भरा बांस का बर्तन होना चाहिए। सजावट के लिए मूर्ति के सिर पर मुकुट, गले में हार और उपर वाले दाएं हाथ में मौली का रक्षासूत्र होना चाहिए। इस तरह गणेशजी की प्रतिमा या तो खड़ी हुई या कमल पर बैठी हुई होनी चाहिए। साथ में वाहन यानी चूहा भी बनाएं। नृत्य करते हुए गणेश बना रहे हैं तो उनकी चार या छ: हाथों वाली मूर्ति बनाएं। साथ में झंडा भी होना चाहिए।
(वास्तुग्रंथ मयमतम के 36 वें अध्याय के मुताबिक)

 

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