पितृ पक्ष 6 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या तक रहेगा इस दौरान पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण और पंचबलि करने की परंपरा है। ग्रंथों में कहा गया है कि इस कर्म का पहला अधिकार पुत्र को होता है। लेकिन पुत्र न हो तो परिवार के अन्य लोगों में से किसी को अधिकार मिलता है। परिवार का कोई सदस्य न हो तो रिश्तेदार, पुरोहित या कुल गुरु के किए गए श्राद्ध से भी पितर संतुष्ट हो जाते हैं।

ग्रंथों में कहा गया है कि महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती है। मार्कंडेय पुराण और वाल्मीकि रामायण में भी इस बात का जिक्र किया गया है। विद्वानों का भी कहना है कि परिवार में पुरुष न हो तो उनके लिए महिला भी श्राद्ध कर्म कर सकती है।

पिंडदान का पहला हक पुत्र को
धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का पहला अधिकारी माना गया है। पुत्र न होने पर परिवार के अन्य लोग या रिश्तेदार भी श्राद्ध कर सकते हैं।
1. पिता का श्राद्ध बेटे के द्वारा होना चाहिए।
2. बेटा न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है।
3. पत्नी न हो तो सगा भाई और उसके भी अभाव में अपने कुल के लोग कर सकते हैं।
4. एक से ज्यादा बेटे होने पर सबसे बड़ा पुत्र ही श्राद्ध करता है।
5. बेटी का पति और नाती भी श्राद्ध के अधिकारी हैं।
6. बेटा न होने पर पोता या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं।
7. बेटा, पोता या प्रपौत्र भी न हो तो विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।
8. पत्नी का श्राद्ध तभी किया जा सकता है, जब कोई पुत्र न हो।
9. बेटा, पोता या बेटा का पुत्र न होने तो भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
10. गोद लिया गया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी होता है।
11. कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।

कौओं को भोजन कराने की परंपरा क्यों
श्राद्ध पक्ष में कौओं को बुलाकर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है। इसकी एक वजह ये है कि पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है। एक कथा के मुताबिक, इंद्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। त्रेतायुग की घटना के अनुसार जयंत ने कौऐ का रूप लेकर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आंख को चोट पहुंचा दी। जयंत ने अपने किए काम के लिए माफी मांगी तब राम ने ये वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। तब से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है।

दान और तर्पण से संतुष्ट होते हैं पितर
श्राद्ध पक्ष में किया गया पितृ तर्पण पितरों को एक साल तक संतुष्ट करता है। वायु, गरुड़ और अन्य पुराणों में भी बताया गया है कि पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध और श्राद्धा के अनुसार दिए गए दान से पितर तो संतुष्ट होते ही हैं साथ ही श्राद्ध करने वाले को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।

पितृ पक्ष में पंचबलि खास
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष में पितरों को दिया गया तर्पण जीवन में काल सर्प दोष जैसी समस्याओं से मुक्ति दिला सकता है। इस दौरान पंच महाबलि देना बहुत ही फायदेमंद होता है। पंच माहबलि का मतलब गौ बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काग (कौआ) बलि, देव (ब्राह्मण) बलि और पीप्लिका (चींटी) बलि है। बलि यानी भोजन देना होता है।

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