बदायूँ शिखर

भारतीय शास्त्रों में चार युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग के बारे उल्लेख किया गया है. जिसमें बताया गया है कि द्वापर युग में कौराव और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ था. जिसके खत्म होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका वापस लौट गए थे. कुछ ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि श्रीकृष्ण द्वारिका में रहने के कुछ समय बाद वैकुंठ धाम चले गए थे.

श्री कृष्ण के वैकुंठ जाते ही धरती पर कलियुग का आरंभ हुआ. वहीं, श्री कृष्ण के जाने के बाद अर्जुन को कई लड़ाइयों में हार का सामना करना पड़ा था. जिसके कारण पांडवों ने अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परिक्षित को उत्तराधिकारी बना दिया. इसके बाद पांडव हिमाल यात्रा पर निकल गए थे. जहां पर सभी पांडवों और द्रौपदी का अंत हो गया था. एस यात्रा में एकमात्र युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुंचे थे.

कहा जाता है कि राजा परिक्षित ने धरती पर कलियुग के आगमन पर उसे युद्ध में हरा दिया था. जिसके बाद कलियुग ने धरती पर रहने के लिए राजा से विनती की थी. जिसपर राजा परिक्षित ने कलियुग को पांच स्थानों पर रहने की अनुमती दी थी. जिसमें जुआ, हिंसा, व्यभिचार, मदिरा और सोने को शामिल किया था. कहा जाता है कि जो भी मनुष्य इन सभी चीजों का त्याग कर देता है उस पर कलयुग कभी हावी नहीं हो पाता है.

इसके साथ ही ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण को याद करने और श्रीमद् भागवत का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति हो सकता है. उनका मानना है कि कलयुग के दौर में दान-पुण्य करके भी कलयुग के प्रकोप को कम कर सकते हैं.

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