ज्येष्ठ मास हिंदू कैलेंडर का तीसरा महीना होता है। ये 24 जून तक रहेगा। धर्मग्रंथों में इस महीने व्रत, पूजा-पाठ और दान का बहुत महत्व बताया गया है। ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण को बचाने के लिए इस महीने खास व्रत-त्योहारों की व्यवस्था की गई है। इसलिए ज्येष्ठ महीने के दौरान आने वाले व्रत और त्योहारों में पानी और पेड़-पौधों की पूजा खासतौर से की जाती है।
ज्योतिषीय नजरिया
इस महीने में पूर्णिमा तिथि पर ज्येष्ठा नक्षत्र होता है। इसलिए इसका नाम ज्येष्ठ पड़ा। इस महीने उत्तराषाढ़ा और पुष्य नक्षत्र को शून्य माना जाता है। यानी इनमें किए गए कामों में असफलता मिलती है और धन हानि भी होती है। साथ ही कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथियों को भी शून्य तिथियां माना गया है। इन दिनों में शुभ काम नहीं करने चाहिए।
धर्मग्रंथों में खास
महाभारत में कहा गया है कि इस महीने नियम से रहकर एक समय भोजन करना चाहिए। इससे एश्वर्य बढ़ता है। शिवपुराण के मुताबिक ज्येष्ठ महीने में तिल का दान करने से शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं और सेहत अच्छी रहती है। इस महीने तिल के दान से शक्ति और उम्र भी बढ़ती है। वहीं, धर्मसिंधु ग्रंथ का कहना है कि इस महीने की पूर्णिमा पर तिल से हवन करने पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
ग्रंथों में ये भी बताया गया है कि इस महीने के कृष्णपक्ष की आखिरी तिथि यानी अमावस्या को शनिदेव का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। इसके अलावा बताया गया है कि ज्येष्ठ महीने में ही हनुमान जी और श्रीराम की पहली मुलाकात हुई थी। इसलिए इस महीने के हर मंगलवार को श्रीराम और हनुमानजी की पूजा की जाती है। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में इस महीने की दशमी तिथि पर ही हनुमान जयंती मनाई जाती है।
संस्कृत में ज्येष्ठ यानी अन्य महीनों में बड़ा
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि प्राचीन काल गणना के मुताबिक हिंदू कैलेंडर के इस महीने में दिन बड़े होते हैं और इसे अन्य महीनों से बड़ा माना गया है। जिसे संस्कृत में ज्येष्ठ कहा जाता है। इसलिए इसका नाम ज्येष्ठ हुआ। इस महीने का स्वामी मंगल होता है। इसके आखिरी दिन पूर्णिमा तिथि के साथ ज्येष्ठा नक्षत्र का संयोग बनता है। इसलिए भी इस महीने को ज्येष्ठ कहा जाता है।