कलश स्थापना के साथ ही नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूरे विधि-विधान से पूजा और उपासना शुरू हो गई है। इस दौरान नौ दिनों तक देवी के अलग- अलग रूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा की आराधना भगवान विष्णु, शिवजी के साथ ही इंद्र और फिर सभी युगों में होती आई है। शक्ति उपासना के लिए पूजा-पाठ और व्रत-उपवास भी किए जाते हैं। इस तरह शारीरिक और मानसिक तौर से खुद पर नियंत्रण रखने की कोशिश को ही तपस्या कहा जाता है।

नवरात्रि के हर दिन का विशेष महत्व होता है। गुरुवार को कलश स्थापना के साथ देवी शैलपुत्री की पूजा की गई। इसके बाद ब्रह्मचारिणी, फिर चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कत्यायिनी और देवी कालरात्रि के बाद महागौरी और आखिरी दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाएगी। 13 अक्टूबर को महाअष्टमी और 14 को महानवमी पड़ेगी। साथ ही नवमी तिथि में ही विसर्जन किया जाना चाहिए।

भगवान विष्णु से द्वापर युग तक देवी पूजा
मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि देवताओं ने भी देवी की पूजा की थी। देवी के दर्शन के लिए सभी देवताओं ने मिलकर स्तुति की। तब मां शक्ति प्रकट हुई। देवराज इंद्र ने राक्षस वृत्रासुर को मारने के लिए मां दुर्गा की पूजा की। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर दैत्य का वध करने के लिए भगवती की पूजा अर्चना की। भगवान विष्णु ने मधु और कैटभ राक्षसों को मारने के लिए देवी से प्रार्थना की थी। भगवान श्री राम ने भी रावण पर जीत के लिए मां दुर्गा की पूजा की। द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अपना बल बढ़ाने और राज्य वापस पाने की कामना से देवी उपासना की थी।

व्रत-उपवास: देवी तत्व से जुड़ने की कोशिश
नवरात्रि में व्रत और उपवास रखने की परंपरा है। ग्रंथों के मुताबिक इन दिनों व्रत रखने से देवी प्रसन्न होती हैं। इससे मनोकामनाएं पूरी होती हैं। व्रत करने के शारीरिक, मानसिक और धार्मिक फायदे भी है। माना जाता है कि नवरात्रि में व्रत रखने से तन और मन दोनों ही पवित्र हो जाते हैं। इसलिए कुछ लोग नवरात्रि के पहले दिन और अष्टमी, नवमी को व्रत- उपवास रखते हैं। ग्रंथों में इसे तपस्या भी कहा गया है। क्योंकि इस प्रक्रिया में हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए देवी तत्व से जुड़ने की कोशिश करते हैं।

स्वच्छता से मिलेगा आराधना का पूरा फल
नवरात्रि में व्रत और पूजा के साथ स्वच्छता का भी ध्यान रखना जरूरी होती है। तभी शक्ति आराधना का पूरा फल मिल पाता है। इसके लिए रोज पूरे घर में सफाई होनी चाहिए। घर में गुग्गल का धू्प देने से वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मकता बढ़ती है। मुख्य द्वार पर अशोक के पत्तों की वंदनवार के साथ स्वास्तिक भी बनाने चाहिए। जिससे नकारात्मक शक्तियां घर में नहीं आ पाती। साफ-सफाई का ध्यान रखने से दरिद्रता भी नहीं आती।

 

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