भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को जलझूलनी या परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस बार ये व्रत 17 सितंबर, शुक्रवार को किया जाएगा। माना जाता है कि इस दिन भगवान योग निद्रा के दौरान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। मान्यताओं के मुताबिक कुछ जगहों पर ये दिन भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा (जन्म के बाद होने वाला मांगलिक कार्यक्रम) के रूप में मनाया जाता है।

व्रत की विधि

इस एकादशी व्रत का नियम दशमी तिथि की रात से ही शुरू हो जाता है। एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही नहाना चाहिए। फिर साफ कपड़े पहनकर भगवान वामन या विष्णुजी की मूर्ति के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें। हो सके तो उपवास करें। उपवास में अन्न नहीं खाएं और एक वक्त फलाहार कर सकते हैं।

पूजा विधि

भगवान पर शुद्ध जल चढ़ाएं फिर पंचामृत से नहलाएं। इसके बाद फिर शुद्ध जल चढ़ाएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। इसके बाद भगवान को नैवेद्य लगाकर आरती करें और सब में प्रसाद बांट दें।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत का महत्व

विष्णु धर्मोत्तर पुराण का कहना है कि विधि-विधान से परिवर्तिनी एकादशी व्रत करने वाले को वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है कि इस एकादशी पर व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा यानी त्रिदेवों की पूजा का फल मिल जाता है। ये व्रत हर तरह की मनोकामना पूरी करने वाला माना जाता है।

 

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