हिंदू धर्म एवं संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है तथा सदैव ही गाय की पूजा की जाती है परंतु  इस दिन गाय के साथ ही बछड़े की भी पूजा करने का विधान है। महिलाएं अपने परिवार की सुख, शांति एवं समृद्घि के लिए इस दिन व्रत करती हैं तथा एक समय भोजन करती हैं।

पूजन- प्रातः स्नान आदि क्रियाओं से निवृत्त होकर गाय माता तथा बछड़े के चारों पांव धोती हैं, सींगों पर लाल और पीले पुष्पों की माला सजाती हैं। माथे पर तिलक लगाती हैं तथा उनकी आरती उतारती हैं। उन्हें प्रसाद में गुड़ व चने के आटे का पेड़ा तथा उड़द की दाल के बने हुए वड़ों का भोग लगाती हैं। उन्हें हरी घास खिलाकर भी प्रसन्न किया जाता है।

शाम को पुनः जब गाएं चर कर आती हैं तो सुनहरे रंग की गाय का बछड़े के साथ फिर वैसे ही पूजन किया जाता है तथा जल भी पिलाया जाता है। इसके साथ ही गाय माता के चरणों का स्पर्श करके उनसे अपने परिवार के मंगल की कामना की जाती है। गाय भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय हैं इसलिए जिस पर गाय माता की कृपा हो जाती है उसे इस संसार में किसी भी वस्तु की कमी कभी नहीं रहती।

क्या न करें- गोवत्स को भोजन में गाय के दूध अथवा उससे तैयार किए गए किसी भी प्रकार के दही, मक्खन, लस्सी अथवा घी आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा न ही तेल में पके हुए भुजिया, नमकीन एवं पकौड़ी आदि पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

गाय के शरीर पर 33 करोड़ देवताओं का वास है

भारतीय संस्कृति में गाय केवल एक पशु ही नहीं बल्कि उसे माता का दर्जा दिया गया है। यह हमारे लिए वरदान ही नहीं बल्कि श्रद्घा का केन्द्र है। यह ऐसा अनमोल रत्न है जिसका दूध, मूत्र और गोबर हमारे लिए एक बहुमूल्य उपहार हैं। जिसका गुणगान वेद और पुराणों में भी है तथा आधुनिक विज्ञान भी इसकी गुणवत्ता का लोहा मान रहा है।

शास्त्रानुसार  गाय के शरीर पर 33 करोड़ देवताओं का वास है तथा गाय की पूजा करने पर सभी देवताओं की पूजा हो जाती है। कार्तिक मास में तो गाय की सबसे अधिक पूजा की जाती है। गाय की सेवा करने मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति हो जाती है। अग्नि पुराण के अनुसार गाय के पूजन से दरिद्रता मिटती है। जिस जल में गाय के सींग स्पर्श करते हैं वह जल भी सभी  पापों का नाश करता है ।

नियमित रूप से गाय को ग्रास देने से मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जिस घर में गाय तो रखी जाती है परंतु उसकी सही सेवा नहीं की जाती वह मनुष्य नरक का भागी बनता है।  जो मनुष्य किसी दूसरे की गाय को गो ग्रास देता है उसे परम पद मिलता है। जो नित्य गाय की सेवा करता है उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। गौ दान करने वाले, गौ की महिमा का गान करने वाले तथा गाय की रक्षा में सहयोग देने वालों के कुल का उद्धार हो जाता है। गाय के श्वासों से पृथ्वी पवित्र होती है तथा उसके स्पर्श मात्र से पापों का नाश होता है।

गऊओं के दर्शन, पूजन, नमस्कार, परिक्रमा, सहलाने, गो ग्रास देने तथा जल पिलाने की सेवा करने से ही मनुष्य को हर प्रकार की दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है।  गाय की चरण रज मस्तक पर लगाने से दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है। जिस स्थान पर गाय का वास होता है वह स्थान  भी पवित्र होता है। गाय के साथ बछड़े की पूजा करने से मनुष्य को जीवन में किसी वस्तु का अभाव नहीं रहता।  किसी भी भवन के निर्माण करने से पूर्व उस भूमि पर बछड़े वाली गाय का ही पूजन किया जाता है।

जब गाय अपने बछड़े को दुलारते हुए चाटती है तो उसके मुंह से झाग निकलकर जब धरती पर गिरती है तो वह धरती पवित्र हो जाती है तथा उस धरती के सभी दोषों का निवारण हो जाता है। गाय की सेवा से घर में संतान की प्राप्ति होती है तथा गाय को हरा चारा खिलाने से अनेक ग्रह दोष  भी मिट जाते हैं। गरुड़ पुराण एवं पदम पुराण के अनुसार गाय पाप विनाशक है जबकि शिव पुराण एवं स्कंद पुराण के अनुसार गोसेवा और गोदान  करने से यम का भय मिट जाता है।  जहां गाय है वहां मंगल ही मंगल है ।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *