पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू हो गया है। जो कि 6 अक्टूबर तक रहेगा। इस पखवाड़े में इस बार 16 की जगह 17 दिन रहेंगे। पंचमी तिथि दो दिन होने के कारण ऐसा होगा। पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण किया जाता है। इसमें पूर्वजों को याद करते हुए उनका आभार जताया जाता है और उनकी पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मण भोज के साथ दान भी दिए जाते हैं।
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार पंचमी तिथि शनिवार और रविवार, दो दिन होने से पंचमी श्राद्ध शनिवार को किया गया। इसके बाद अगला श्राद्ध सोमवार को यानी षष्ठी तिथि की पितृ पूजा की जाएगी और मंगलवार को सप्तमी का श्राद्ध होगा।
पितृ पक्ष में धरती पर आते हैं पितर
माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितृ स्वर्गलोक, यमलोक, पितृलोक, देवलोक, चंद्रलोक व अन्य लोकों से सूक्ष्म वायु शरीर धारण कर धरती पर आते हैं। वे देखते हैं कि उनका श्राद्ध श्रद्धाभाव से किया जा रहा है या नहीं। अच्छे कर्म दिखने पर पितृ अपने वंशजों पर कृपा करते हैं। श्राद्ध में पितरों के नाम से तर्पण, पूजा, ब्रह्मण भोज और दान करना पुण्यकारी होता है।
कहा जाता है कि पितृ खुश हैं तो ईश्वर की भी आप पर कृपा होती है। पितरों को खुश करने के लिए हमें श्रद्धाभाव के साथ उनका तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज एवं दान करना चाहिए। इसी श्रद्धा का प्रतीक होते हैं श्राद्ध। इन्हें कनागत भी कहते हैं।
पंचमी का श्राद्ध (25 सितंबर) : पंचमी तिथि का श्राद्ध शनिवार को किया जा रहा है। अगर किसी अविवाहित व्यक्ति की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो उसका श्राद्ध पितृ पक्ष की पंचमी तिथि पर करना चाहिए। इस बार ये तिथि 25 सितंबर को है।
षष्ठी का श्राद्ध (27 सितंबर): षष्ठी तिथि का श्राद्ध सोमवार को किया जाना चाहिए। क्योंकि ये तिथि रविवार को दोपहर तकरीबन 1.15 से शुरू हो रही है। जो कि सोमवार को दोपहर 3.40 तक रहेगी। कुतुप काल के दौरान षष्ठी तिथि सोमवार को ही होने से इसी दिन ये श्राद्ध करना चाहिए।
सप्तमी का श्राद्ध (28 सितंबर): सप्तमी तिथि का श्राद्ध मंगलवार को होगा। इस दिन सप्तमी तिथि शाम 6.15 तक रहेगी। इस दिन का आठवां मुहूर्त यानि कुतुप काल भी सप्तमी तिथि में होने से इसी दिन सातवां श्राद्ध करना शुभ रहेगा।