अभी पितृ पक्ष चल रहा है और ये पक्ष 6 अक्टूबर तक रहेगा। इन दिनों में परिवार के मृत सदस्यों की तिथि पर उनकी आत्मशांति के लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध और दान-पुण्य करने की परंपरा है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार पितरों से जुड़े पुण्य कर्म एकांत में करना चाहिए। अगर पिंडदान करते समय पिंडों पर बहुत लोगों की नजर पड़ती है तो उस पिंडदान से पितरों को तृप्ति नहीं मिलती है।
ध्यान रखें पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म दूसरों की भूमि पर नहीं करना चाहिए। जंगल, पर्वत, पुण्य तीर्थ और देव मंदिर, ये जगहें दूसरों की भूमि में नहीं आते हैं, क्योंकि इन जगहों पर किसी व्यक्ति का स्वामित्व नहीं होता है। इन जगहों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के घर में अपने पितरों से जुड़े पुण्य कर्म करने से बचना चाहिए।
अगर कोई व्यक्ति बहुत धनी है, तब भी उसे श्राद्ध कर्म में अधिक विस्तार नहीं करना चाहिए। श्राद्ध कर्म बहुत ही सादगी से ही करना चाहिए।
जो लोग पितृ पक्ष में क्रोध करते हैं, भयभीत रहते हैं, अधार्मिक कर्म में लगे रहते हैं, उनके पिंडदान, तर्पण आदि पुण्य कर्म सफल नहीं हो पाते हैं।
ब्रह्माजी ने पशुओं की सृष्टि करते समय सर्वप्रथम गायों की रचना की थी। इसीलिए श्राद्ध में गायों का दूध, दही और घी प्रयोग करना चाहिए। जौ, धान, तिल, गेंहू, मूंग, सरसों का तेल, चावल आदि से पितरों को तृप्त करना चाहिए।
आम, बेल, अनार, बिजौरा, पुराना आंवला, खीरा, नारियल, नारंगी, खजूर, अंगूर, परवल, बैर आदि चीजों का उपयोग श्राद्ध में जरूर करना चाहिए।
अगर पितृ कर्म के लिए तैयार भोजन में बाल गिर जाए या कोई कीड़ा गिर जाए या भोजन बासी हो, दुर्गंध युक्त हो तो ऐसा खाना पितृ कर्म में उपयोग न करें। इन दिनों में बैंगन और मदिरा का भी त्याग करना चाहिए। मसूर, तुवर, गाजर, लौकी, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाडा, जामुन, सुपारी, महुआ, अलसी, पीली सरसों, चना ये सब चीजें भी श्राद्ध के लिए वर्जित हैं।