पितृ पक्ष 6 अक्टूबर तक रहेगा। इस दौरान पिंडदान, तर्पण और पंचबली के साथ श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं। लेकिन इन दिनों कई तरह के दान करने की भी परंपरा है। जो कि धर्म ग्रंथों में बताए गए हैं। ग्रंथों में मृतात्मा और पितरों की संतुष्टि के लिए जो दान बताए हैं उनमें से कई चीजें आसानी से घर में मिल जाती हैं।
बनारस, पुरी और उज्जैन के विद्वानों का कहना है कि ये जरूरी नहीं कि हमेशा महंगी चीजों का ही दान किया जाए। श्रद्धा और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर घर में जो चीजें मिल जाए उनसे हम अपने पितरों के निमित्त दान कर सकते हैं। जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है और हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं।
पितृ दोष से मुक्ति और आर्थिक संपन्नता के लिए दान
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष में किए गए दान से पितर संतुष्ट तो होते हैं। इससे पितृ दोषों से मुक्ति मिलने लगती है। साथ ही आर्थिक संपन्नता भी मिलती है। पितरों के लिए जो चीजें दान करनी चाहिए उनका जिक्र पुराणों और अन्य धर्म ग्रंथों में मिलता है। इनमें से ज्यादातर चीजें तकरीबन हर घर में आसानी से मिल जाती हैं।
ग्रंथों में बताए गए आठ और दस महादान
निर्णयसिंधु और गरुड़ पुराण में महादान की जानकारी दी गई है। इन ग्रंथों में बताया गया है कि श्राद्ध या मृत्यु के बाद कौन सी चीजों का दान किया जाना चाहिए। जिससे मृतआत्मा या पितरों का संतुष्टि मिले। इसके लिए इन ग्रंथों में दस तरह के महादान बताए गए हैं। लेकिन इतना न कर पाएं तो आठ तरह की खास चीजों का दान कर के ही अष्ट महादान का भी पुण्य मिल जाता है।
दस महादान
गोभूतिलहिरण्याज्यं वासो धान्यं गुडानि च ।
रौप्यं लवणमित्याहुर्दशदानान्यनुक्रमात्॥ – निर्णय सिन्धु ग्रंथ
अर्थ – गाय, भूमि, तिल, सोना, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी और नमक इन दस चीजों का दान दश महादान कहलाता है। यह दान पितरों के निमित्त दिया जाता है। किसी कारण से मृत्यु के वक्त न किया जा सके तो श्राद्ध पक्ष में इन चीजों का दान करने का विधान बताया गया है।
अष्ट महादान
तिला लोहं हिरण्यं च कार्पासो लवणं तथा।
सप्तधान्यं क्षितिर्गावो ह्येकैकं पावनं स्मृतम्॥ – गरुड पुराण
अर्थ – तिल, लोहा, सोना, कपास, नमक, सात तरह के धान, भूमि और गाय। इन आठ का दान करना ही अष्ट महादान कहलाता है। इस तरह का महादान मृतात्मा या पितरों को संतुष्टि देने वाला होता है।