शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान् विष्णु जिस सागर में निवास करते है वह मीठे पानी व दूध से निर्मित सागर है जिसे क्षीरसागर के नाम से जाना जाता है, जबकि हकीकत में देखा जाए तो इस पृथ्वी पर जितने भी समुद्र है सभी का पानी खारा है। पौराणिक मान्यता है की महाराजा पृथु के पुत्रों ने जिस सात समुद्र का निर्माण किया था वह सभी मीठे पानी और दूध की भांति थे। समुद्र के पानी का खारा होने के पीछे एक पौराणिक रहस्य है आइये जानते है समुद्र के खारे पानी का रहस्य…

पौराणिक कथा के अनुसार जब माता पार्वती भगवान् शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या कर रही थी तो उनकी तपस्या के प्रभाव से तीनों लोक कांपने लगे. जिससे भयभीत होकर सभी देवता एकत्र होकर इस विषय में विचार विमर्श करने लगे, लेकिन समुद्र देव माता पार्वती की सुन्दरता पर मोहित हो चुके थे जिसके वशीभूत होकर उन्होंने अपने विचार सभी देवताओं के समक्ष रखे और भगवान् शिव के विषय में भला-बुरा कहने लगे। समुद्र देव की इस बात के लिए भगवान शिव व सभी देवताओं में क्षमा कर दिया. जिसके कारण समुद्रदेव का अहंकार और अधिक बढ़ गया और वह माता पार्वती के समक्ष उपस्थित हो गए और उनके समक्ष विवाह प्रस्ताव रखा पर माता पार्वती ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

जिससे समुद्रदेव को बहुत क्रोध आया और अपने अहंकार के वशीभूत होकर उन्होंने भगवान् शिव के विषय में माता पार्वती से खूब भला-बुरा कहा व भगवान् शिव को श्मशान निवासी, अघोरी, भस्मधारी आदि नामों से संबोधित कर माता पार्वती से अपने निर्णय को बदलने के लिए कहा. और कहा की उसका समुद्र मीठे पानी व दूध से भरपूर है जिसकी वजह से वह माता पार्वती को पत्नी बनाने का आधिकारी है. समुद्रदेव के कथनों को सुनकर माता पार्वती को बहुत क्रोध आया और उन्होंने समुद्रदेव को श्राप दिया कि उसे जिस मीठे व दूध जैसे पानी पर अभिमान है वह जल खारा हो जाए और किसी के पीने योग्य न रहे. इसी वजह से सभी समुद्रों का पानी खारा होता है।

 

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