01 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। शास्त्रों में भगवान शिव को औढ़र दानी कहा गया हैं। शिव का यह नाम इसलिए है क्योंकि यह थोड़ी सी भक्ति से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और तुरंत भक्तों की मनोकामना को पूरी करते हैं। इसलिए सकाम भावना से पूजा-पाठ करने वाले लोगों को भगवान शिव अति प्रिय हैं। भोलेनाथ थोड़ी सी भक्ति और बेलपत्र एवं जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। यही कारण है कि भक्तगण जल और बेलपत्र से शिवलिंग की पूजा करते हैं और शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। भोलेनाथ को ये दोनों चीजें क्यों पसंद हैं इसका उत्तर पुराणों में इस प्रकार दिया गया है।
इसलिए प्रिय है जल और बेलपत्र
शिवमहापुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नाम का विष निकला तो इसके प्रभाव से सभी देवता व जीव-जंतु व्याकुल होने लगे,सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया। संपूर्ण सृष्टि की रक्षा के लिए देवताओं और असुरों ने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब भोलेनाथ ने इस विष को अपनी हथेली पर रखकर पी लिया। विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए उन्होंने इसे अपने कंठ में ही धारण कर लिया। जिस कारण शिवजी का कंठ नीला पड़ गया और इसलिए महादेवजी को ‘नीलकंठ’कहा जाने लगा। लेकिन विष की तीव्र ज्वाला से भोलेनाथ का मस्तिष्क गरम हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिवजी के मस्तिष्क की गरमी को शांत करने के लिए उन पर जल उड़ेलना शुरू कर दिया और ठंडी तासीर होने की वजह से बेलपत्र भी उनके मस्तिष्क पर चढ़ाए । तब से ही शिवजी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गयी। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले भक्त पर भगवान आशुतोष अपनी कृपा बरसाते हैं । साथ ही यह भी माना जाता है कि बेलपत्र को शिवजी को चढ़ाने से दरिद्रता दूर होती है और व्यक्ति सौभाग्यशाली बनता है।
बेलपत्र से भील को मिली मुक्ति
शिवरात्रि की कथा में एक प्रसंग आता है कि शिवरात्रि की रात्रि में एक भील शाम हो जाने की वजह से घर नहीं जा सका। उस रात उसे बेल के वृक्ष पर रात बितानी पड़ी। नींद आने से वृक्ष से गिर न जाए इसलिए रात भर बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा। संयोगवश बेल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से शिवजी भील से प्रसन्न हो गए। शिव जी भील के सामने प्रकट हुए और परिवार सहित भील को मुक्ति का वरदान दिया। इस तरह बेलपत्र की महिमा से भील को शिवलोक प्राप्त हुआ।