कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की द्वितीया यानी दीपावली के दूसरे दिन भाई दूज मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस बार ये शनिवार यानी 6 नवंबर को है। पुराणों के मुताबिक इस दिन भगवान यम अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे। तब से इस पर्व की परंपरा शुरू हुई है। इस दिन बहनें अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर उसकी लंबी उम्र की मनोकामना करती है। माना जाता है ऐसा करने से यमराज उन भाई-बहनों के कष्ट दूर कर देते हैं।
भाईदूज के मुहूर्त
सुबह 11.45 से 12. 25 तक
दोपहर 1.10 से 3.21 तक
बहन को यमुना स्नान करवाने की परंपरा
भाई-दूज, धर्मराज यम और उनकी बहन यमुना के प्रेम का त्योहार है। इस दिन यम और यमुना की तरह भाई-बहन मिलते हैं। बहन भाई का सत्कार कर के तिलक लगाती है। इस तरह भाई-बहन के प्रेम से यम और यमुना प्रसन्न होते हैं। इस पर्व पर भाई और बहन को यमुना स्नान करना चाहिए। ऐसा न कर पाएं तो नहाने के पानी में यमुना का जल मिलाकर नहा लें और देवी यमुना और धर्मराज यम को प्रणाम करें। इससे दोनों की उम्र बढ़ती है। जो यम द्वितीया के दिन इस प्रकार दूज पूजन के बाद तिलक की रस्म पूरी करते हैं। उन्हें स्वर्ग मिलता है।
भाई दूज से जुड़ी कथा- सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संतान थीं। पुत्र का नाम यम और पुत्री यमुना थी। संज्ञा अपने पति सूर्य की तेज किरणों को सहन नहीं करने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। इसी से ताप्ती नदी और शनि का जन्म हुआ। इसी छाया से सदा युवा रहने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) का यम और यमुना के साथ व्यवहार बदल गया। इससे दुखी होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई यम को पापियों को दंड देते देख दु:खी होती, इसलिए वो गोलोक चली गई। कई सालों बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन कहीं नहीं मिली। फिर यम खुद गोलोक गए, जहां यमुना जी मिलीं। इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत खुश हुई। यमुना ने भाई का स्वागत किया और अच्छा भोजन करवाया। इससे यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने कहा कि जो मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी नहीं जाए। इससे यम चिंतित हो गए भाई को ऐसे देख, यमुना फिर बोली जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें तथा मथुरा नगरी के घाट पर नहाएं, वे यमपुरी नहीं जाएं। यमराज ने ये बात मानकर वरदान दे दिया। बहन-भाई के मिलन के इस पर्व को अब भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है।

