एक बार पांडवों के पास नारद मुनि आए और उन्होंने युधिष्ठर से कहा की स्वर्ग में आपके पिता पांडु दुखी हैं। कारण पूछने पर उन्होंने कहा की पांडु अपने जीते जी राजसूय यज्ञ करना चाहते थे जो न कर सके ऐसे में आपको ऐसा कर उनकी आत्मा को शांति पहुंचना चाहिए।

तब पांडवो ने राजसूय यज्ञ आयोजित किया, आयोजन को भव्य बनाने के लिए युधिष्ठर ने यज्ञ में भगवान शिव के परम भक्त ऋषि पुरुष मृगा को आमंत्रित करने का फैसला किया। ऋषि पुरुष मृगा जन्म से ही अपने नाम के जैसे थे। उनका आधा शरीर पुरुष का था और पैर मृग के समान थे। उन्हें ढूंढने और बुलाने का जिम्मा भीम को सौंपा गया। जब भीम, पुरुषमृगा की खोज में निकलने लगे तो श्री कृष्ण ने भीम को चेताया की यदि तुम पुरुषमृगा की गति का मुकाबला नहीं कर पाए तो वो तुम्हें मार देगा।

इस बात से भयभीत भीम, पुरुषमृगा की खोज में हिमालय की ओर चल दिए। जंगल से गुजरते वक़्त उन्हें हनुमान जी मिले। हनुमान जी ने भीम से उसके चिंतित होने का कारण पूछा। भीम ने हनुमान को पूरी कहानी बताई। हनुमान ने कहा यह सच है कि पुरुषमृगा की गति बहुत तेज है और उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। उसकी गति मंद करने का एक ही उपाय है। चूँकि वो शिवजी का परम भक्त है इसलिए यदि हम उसके रास्ते में शिवलिंग बना दे तो वो उनकी पूजा करने अवश्य रुकेगा।

हनुमान ने ऐसा कहकर भीम को अपने 3 केश दिए और कहा की जब भी लगे कि पुरुषमृगा तुम्हें पकड़ने वाले है तो तुम एक बाल वहां गिरा देना। यह एक बाल 1000 शिवलिंगों में परिवर्तित हो जाएगा। पुरुषमृगा अपने स्वाभाव अनुसार हर शिवलिंग की पूजा करेंगे और तुम आगे निकल जाना।

उसके बाद भीम आज्ञा लेकर आगे बढ़े. कुछ दूर जाकर ही भीम को पुरुष मृगा मिल गए जो को भगवान महादेव की स्तुति कर रहे थे। भीम ने उन्हें प्रणाम किया और अपने आने का कारण बताया, इस पर ऋषि ने सशर्त जाने के लिए हां कर दी।

शर्त ये थी की भीम को उनसे पहले हस्तिनापुर पहुंचाना था और अगर वो ऐसा न कर सके तो ऋषि पुरुष मृगा भीम को खा जाएंगे. भीम ने भाई की इच्छा को ध्यान में रखते हुए हां कर दी और हस्तिनापुर की तरफ पुरे बल से दौड़ पड़े। काफी दौड़ने के बाद भीम ने भागते भागते ही पलट कर देखा की पुरुषमृगा पीछे आ रहे है या नहीं, तो चौंक गए की पुरुषमृगा उसे बस पकड़ने वाले ही हैं। तभी भीम को हनुमान के बाल याद आए और उनमे से एक को गिरा दिया, गिरा हुआ बाल हज़ार शिवलिंगो में बदल गया।

शिव के परमभक्त होने के नाते पुरुषुमृगा हर शिवलिंग को प्रणाम करने लगे और भीम भागता रहा। ऐसा भीम ने तीन बार किया और जब वो हस्तिनापुर के द्वार में घुसने ही वाला था तो पुरुषमृगा ने भीम को पकड़ लिया, हालांकि भीम ने छलांग लगाई थी पर उसके पैर दरवाजे के बाहर ही रह गए।

इस पर पुरुषमृगा ने भीम को खाना चाहा, इसी दौरान कृष्णा और युधिष्ठर द्वार पर पहुंच गए। दोनों को देख कर भीम ने भी बहस शुरू कर दी, तब युधिष्ठर से पुरुषमृगा ने न्याय करने को कहा। तब युधिष्ठर ने कहा की भीम के पांव द्वार के बाहर रह गए थे। इसलिए आप सिर्फ भीम के पैर ही खाने के हक़दार है, युधिष्ठर के न्याय से पुरुषमृगा प्रसन्न हुए और भीम को बक्श दिया। उन्होंने राजसूय यज्ञ में भाग लिया और सबको आशीर्वाद भी दिया।

 

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