महाभारत में भीष्म पितामह महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे। वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे और हस्तिनापुर की सेवा में लगे रहे। उनके पिता राजा शांतनु थे। भीष्म के जन्म से जुड़ी कथा बहुत ही खास है। महाभारत के अनुसार राजा शांतनु को देव नदी गंगा से प्रेम हो गया था। राजा ने गंगा नदी से विवाह करने की इच्छा बताई। इसके बाद गंगा ने राजा शांतनु के सामने शर्त रखी थी कि मुझे मेरी इच्छा के अनुसार काम करने की पूरी स्वतंत्रता चाहिए, जिस दिन आप (शांतनु) मुझे किसी बात के लिए रोकेंगे, मैं आपको छोड़कर चली जाउंगी। शांतनु ने गंगा की ये शर्त मान ली। इसके बाद दोनों ने विवाह कर लिया।

गंगा ने नदी में बहा दीं 6 संतान

विवाह के बाद गंगा जब भी किसी संतान को जन्म देती, वह संतान को तुरंत नदी में बहा देती थीं। शांतनु उन्हें रोक नहीं पाते, क्योंकि वे अपने वचन में बंधे हुए थे और गंगा को खोने से डरते थे। इसी तरह गंगा ने 6 संतानें नदी में बहा दीं। जब सातवीं संतान को भी गंगा नदी में बहाने जाने लगी तो शांतनु का सब्र टूट गया। उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने गंगा को रोक कर पूछा कि वो अपनी संतानों को इस तरह नदी में बहा क्यों देती है?

गंगा ने शांतनु से कहा कि राजन् आज आपने संतान के लिए मेरी शर्त को तोड़ दिया है। अब ये संतान ही आपके पास रहेगी और मैं अपनी शर्त के अनुसार सबकुछ छोड़कर जा रही हूं। शांतनु ने अपनी संतान को बचा लिया, लेकिन उसे अच्छी शिक्षा के लिए कुछ सालों के लिए गंगा के साथ ही छोड़ दिया। उस पुत्र का नाम देवव्रत रखा गया था।

गंगा ने अपने पुत्र देवव्रत का पालन किया और कुछ वर्षों के बाद गंगा उसे लौटाने शांतनु के पास आईं। देवव्रत अब एक महान योद्धा और धर्मज्ञ बन चुका था। पुत्र के लिए शांतनु ने गंगा जैसी देवी का त्याग स्वीकार किया, उसी पुत्र को शिक्षा के लिए कई साल अपने से दूर भी रखा। इसी देवव्रत ने शांतनु का विवाह सत्यवती से करवाने के लिए आजीवन अविवाहित रहने की भीषण प्रतिज्ञा की थी। जिसके बाद इसका नाम भीष्म पड़ा। भीष्म ने अंतिम समय तक अपने पिता के वंश की रक्षा की थी।

 

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