माघ महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 4 फरवरी को है। इस दिन भगवान गणेश की विनायक रूप में पूजा करने का विधान है। इसे वरद, विनायक या तिलकुंद चतुर्थी भी कहा जाता है। इस व्रत पर भगवान गणेश और चंद्रमा की पूजा करते हैं। इनके साथ ही कुछ ग्रंथों में चतुर्थी देवी की पूजा करने का भी विधान बताया गया है। चतुर्थी व्रत परिवार और वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक चतुर्थी व्रत के प्रभाव से हर तरह की परेशानियां दूर होती है।

चंद्र दर्शन और गणेश पूजा
महाराष्ट्र और तमिलनाडु में शुक्ल और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर व्रत करने की परंपरा है। इस दिन व्रत के साथ ही भगवान गणेश की पूजा भी की जाती है। शिव पुराण के मुताबिक भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न में हुआ था इसलिए यहां दोपहर में भगवान गणेश की पूजा प्रचलित है। इन इलाकों के अलावा उत्तरी भारत में कई जगहों में भी ये व्रत किया जाता है, लेकिन यहां शाम को गणेश पूजा के बाद चंद्रमा के दर्शन और पूजा के बाद व्रत खोलने की परंपरा है।

तिल और जमींकंद का फलाहार
विनायक चतुर्थी में भगवान गणेश का नाम लेकर ही व्रत की शुरुआत की जाती है। इस दिन तिल, फल या सिर्फ जमीन में उगने वाले फल यानी कंदमूल खाए जाते हैं। व्रत में गणपति पूजा के बाद चंद्र दर्शन करें और फिर ही उपवास खोलें। इस व्रत के बारे में ग्रंथों में लिखा है कि अगर इस दिन विधि-विधान से गणेश जी की पूजा और व्रत किया जाता है तो हर तरह के संकट दूर होते हैं।

कष्ट और रुकावटें दूर होती हैं
परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष की चतुर्थी का व्रत किया जाता है। ये व्रत सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय तक चलता है, हालांकि, शाम को चंद्रमा के दर्शन और पूजा के बाद एक बार भोजन किया जाता है। भगवान गणेश हर तरह के कष्ट को हरने वाले और कामकाज में आने वाली रुकावटों को दूर करने वाले हैं इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। भगवान गणेश सुख प्रदान करने वाले हैं। इसलिए यह व्रत रखने से सभी कष्ट दूर होते हैं।

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