अभी पौष मास चल रहा है, इस माह में सूर्य पूजा करने की परंपरा है। शास्त्रों में पंचदेव बताए गए हैं, जिनकी पूजा रोज करनी चाहिए। पंचदेव की पूजा के बिना कोई पूजन-कर्म पूरा नहीं माना जाता है। ये पंचदेव हैं- शिव जी, विष्णु जी, गणेश जी, देवी दुर्गा और सूर्य देव। ज्योतिष में सूर्य को नवग्रहों का अधिपति माना जाता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार सूर्य एक वर्ष में 12 बार राशियां बदलता है। ये ग्रह करीब एक माह एक राशि में रुकता है। जब सूर्य का राशि परिवर्तन होता है तो उस स्थिति को संक्रांत कहा जाता है। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा तो उसे मकर संक्रांति (14 जनवरी) कहा जाता है।

पौष मास में ठंड पूरे प्रभाव होती है। इन दिनों में शरीर को ठंड से लड़ने की शक्ति मिलती रहे, इसके लिए खाने में तिल-गुड़ खासतौर पर शामिल किए जाते हैं। तिल-गुड़ से मौसमी बीमारियों से लड़ने की शक्ति शरीर को मिलती रहती है।

ऐसा है सूर्य देव का परिवार

सूर्य देव के परिवार में उनकी पत्नी और तीन संतानें हैं। पत्नी का संज्ञा है, जो कि एक देव कन्या मानी गई हैं। यमराज और यमुना सूर्य और संज्ञा की संतानें हैं। संज्ञा सूर्य देव का तेज सहन नहीं कर पा रही थीं, तब उन्होंने अपनी छाया को सूर्यदेव की सेवा में लगा दिया। इसके बाद सूर्य देव और छाया की संतान शनिदेव का जन्म हुआ। छाया की संतान होने की वजह से शनि का रंग काला है।

ये हैं सूर्य देव से जुड़ी खास बातें

सूर्य देव के रथ में सात घोड़े हैं। रथ के 7 घोड़े सप्ताह के 7 दिनों के प्रतीक हैं। रथ को गरुड़देव के भाई अरुण चलाते हैं।

मान्यता है कि त्रेतायुग में सुग्रीव का जन्म सूर्य देव के अंश से हुआ था।

द्वापर युग में सूर्य देव ने कुंती को एक पुत्र दिया था, जिसे कर्ण के नाम से जाना जाता है।

हनुमान जी ने सूर्य को अपना गुरु बनाया था। सूर्य से ही उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था।

 

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