सावन माह में शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने का विशेष महत्व है। सभी ज्योतिर्लिंगों की अलग-अलग खास विशेषताएं हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की खासियत है यहां की भस्म आरती।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर रोज सुबह शिवजी की आरती भस्म से की जाती है। भस्म से ही शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और शिवपुराण कथाकार पं. मनीष शर्मा के अनुसार शिवजी को भस्म विशेष प्रिय है। महादेव श्रृंगार के रूप में भस्म और नाग धारण करते हैं। महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है। इस संबंध में अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं।

ब्रह्मा, विष्णु और शिव, ये तीनों देवता सृष्टि का संचालन करते हैं। सृष्टि संचालन में तीनों देवताओं के दायित्व अलग-अलग हैं। ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णुजी पालन करते हैं और शिवजी संहार करते हैं। जब सृष्टि का संहार होगा तो सबकुछ भस्म हो जाएगा यानी सृष्टि राख में बदल जाएगी। भस्म शिवजी को चढ़ाने का अर्थ ये है कि सृष्टि समाप्त होने के बाद सबकुछ शिवजी में विलीन हो जाएगा। सृष्टि के नष्ट होने के बाद ब्रह्माजी फिर से सृष्टि की रचना करते हैं। यही क्रम अनवरत चलता रहता है।

शिवजी भस्म धारण करके संदेश देते हैं कि जब इस सृष्टि का नाश होगा, तब सभी जीवों की आत्माएं भी शिवजी में ही समाहित हो जाएंगी।

कैसे तैयार होती है भस्म

शिवपुराण के अनुसार भस्‍म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बैर के पेड़ की लकडि़यों को एक साथ जलाया जाता है। मंत्रोच्‍चारण किए जाते हैं। इन चीजों को जलाने पर जो भस्‍म मिलती है, उसे कपड़े से छाना जाता है। इस प्रकार तैयारी की गई भस्म को शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है।

कैसे पहुंचे उज्जैन?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 200 किमी और इंदौर से करीब 55 किमी दूर है उज्जैन। उज्जैन शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। कोरोना महामारी की वजह से इस साल यहां कावड़ यात्रा प्रतिबंधित है। दर्शन के लिए देशभर से भक्त यहां पहुंच रहे हैं। भक्तों को महामारी से संबंधित नियमों का पालन करना होता है। उज्जैन का करीबी एयरपोर्ट इंदौर में है। देशभर से उज्जैन पहुंचने के लिए कई रेलगाडियां चल रही हैं। सड़क मार्ग से भी उज्जैन सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। उज्जैन में महाकाल मंदिर के आसपास और अन्य क्षेत्रों में यात्रियों के रहने और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्थाएं मिल जाती हैं। यात्री अपनी सुविधा के अनुसार होटल, लॉज या धर्मशाला में ठहर सकते हैं।

 

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