इस बार पंचांग भेद होने की वजह से वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि दो दिन मानी जा रही है। इसलिए 22 और 23 मई, दोनों दिन एकादशी का व्रत किया जाएगा। इसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। वैशाख महीने के शुक्लपक्ष में होने से ये भगवान विष्णु की पूजा, व्रत और दान के लिए ये दिन बहुत ही खास माना जाता है। इस दिन नियम संयम से रहकर किए गए पूजा-पाठ और दान का फल कई यज्ञों के जितना होता है।
स्कंद पुराण के वैष्णवखंड अनुसार इस दिन समुद्र मंथन से अमृत प्रकट हुआ था और भगवान विष्णु ने विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर के अमृत की रक्षा की थी। इस एकादशी का व्रत करने वाले को एक दिन पहले यानी दशमी तिथि की रात से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। इस व्रत में सिर्फ फलाहार ही किया जाता है।
पूजा और व्रत की विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करें। संभव हो तो गंगाजल को पानी में डालकर नहाना चाहिए। इसके बाद साफ वस्त्र धारण कर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं तथा पुन: व्रत का संकल्प लें। एक कलश पर लाल वस्त्र बांधकर कलश की पूजा करें।
इसके बाद उसके ऊपर विष्णु की प्रतिमा रखें। प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करके नए वस्त्र पहनाएं।
पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पीले फूल पंचामृत और तुलसी के पत्ते चढ़ाने चाहिए।
पीले फूल के साथ अन्य सुगंधित पुष्पों से विष्णु भगवान का श्रृंगार करें। पुन: धूप, दीप से आरती करें और मिष्ठान तथा फलों का भोग लगाएं। रात्रि में भगवान का भजन कीर्तन करें।
मोहिनी एकादशी का महत्व
ऐसी मान्यता है कि वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने से मन और शरीर दोनों ही संतुलित रहते हैं। खासतौर से गंभीर रोगों से रक्षा होती है और यश मिलता है। इस एकादशी के उपवास से मोह के बंधन नष्ट हो जाते हैं, अतः इसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। कुछ ग्रंथों में बताया गया है कि इस एकादशी पर व्रत करने से गौ दान के बराबर पुण्य मिलता है। इस एकादशी का व्रत समस्त पापों का क्षय करके व्यक्ति के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि करता है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति की ख्याति चारों ओर फैलती है।