रविवार 6 जून को ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी है। इसे अपरा और अचला एकादशी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु-लक्ष्मीजी के साथ पीपल की पूजा का भी खास महत्व है। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान किया जाता है। फिर व्रत, पूजा और श्रद्धानुसार दान का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा करते हैं। फिर पीपल पर जल चढ़ाकर पूजा की जाती है और घी का दीपक लगाकर उस पवित्र पेड़ की परिक्रमा करते हैं।

पीपल के पेड़ की पूजा का विधान

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना हैं कि ज्येष्ठ महीने की एकादशी पर पीपल पूजा की परंपरा है। इस दिन पीपल की पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और पितर भी संतुष्ट हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि सुबह-सुबह पीपल पर देवी लक्ष्मी का आगमन होता है। इस कारण इसकी पूजा करनी बहुत लाभदायक होता है। पीपल की पूजा करने से कुंडली में शनि, गुरु समेत अन्य ग्रह भी शुभ फल देते हैं।

ज्योतिर्विज्ञान के प्रमुख आचार्य वराहमिहिर ने भी अपने ग्रंथों में बताया है कि शुभ तिथियों और शुभ महीनों में पीपल का पेड़ लगाना चाहिए। माना जाता है कि इससे बृहस्पति ग्रह का अशुभ फल भी कम होने लगता है।

पीपल में देवताओं का वास

ग्रंथों में बताया है कि पीपल ही एक ऐसा पेड़ है जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी, तीनों देवताओं का वास होता है। सुबह जल्दी इस पेड़ पर जल चढ़ाने, पूजा करने और दीपक लगाने से तीनों देवताओं की कृपा मिलती है। पीपल के पेड़ पर पानी में दूध और काले तिल मिलाकर चढ़ाने से पितर संतुष्ट होते हैं। इस पेड़ पर सुबह पितरों का भी वास होता है। फिर दोपहर बाद इस पेड़ पर दूसरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ने लगता है।

पीपल के पेड़ से जुड़ी इस एकादशी की कथा\

पुराने समय में महिध्वज नाम का राजा था। उसका छोटा भाई ब्रजध्वज अधर्मी था। वो बड़े भाई महिध्वज को दुश्मन समझता था। एक दिन ब्रजध्वज ने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसके शरीर को जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे दबा दिया। इसके बाद राजा की आत्मा उस पीपल में रहने लगी। वो आत्मा वहां से निकलने वालों को परेशान करती थी।

एक दिन धौम्य ऋषि उस पेड़ के नीचे से निकले। उन्होंने अपने तप से राजा के साथ हुए अन्याय को समझ लिया। ऋषि ने राजा की आत्मा को पीपल से हटाकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। साथ ही प्रेत योनि से छुटकारे के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत से राजा की आत्मा दिव्य शरीर बनकर स्वर्ग चली गई। इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने की भी परंपरा है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *