बुधवार, 10 नवंबर को छठ पूजा है। इस तिथि पर सूर्य को विशेष अर्घ्य दिया जाता है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर छठ पूजा उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव की शुरुआत 8 नवंबर से होगी और 10 नवंबर की सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। 11 नवंबर की सुबह सूर्य को अर्घ्य देकर ये व्रत पूरा होगा।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक सूर्य पंचदेवों में से एक हैं। रोज सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। सूर्य को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करें, क्योंकि तांबा सूर्य की धातु है। जल में चावल, रोली, फूल पत्तियां भी डाल लेना चाहिए, इसके बाद सूर्य को अर्घ्य दें।
जल चढ़ाते समय गायत्री मंत्र का जाप करें। गायत्री मंत्र – ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
सूर्य को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जाप करने से मन शांत होता है और एकाग्रता बढ़ती है। मंत्र जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए।
ग्रह का राजा है सूर्य
ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है। विज्ञान के अनुसार सभी नौ ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। ग्रंथों में शिवजी, गणेशजी, विष्णुजी, देवी दुर्गा और सूर्य ये पंचदेव बताए गए हैं। इन पांचों की पूजा रोज करने की परंपरा है। सूर्य एक मात्र साक्षात दिखाई देने वाले देवता हैं।
सूर्य की संतान हैं यमराज, यमुना और शनिदेव
सूर्यदेव का विवाह संज्ञा नाम की देव कन्या से हुआ था। यमराज और यमुना सूर्य-संज्ञा की संतान हैं। मान्यता है कि संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही थीं, तब संज्ञा ने अपनी छाया को सूर्यदेव की सेवा में लगा दिया। शनिदेव सूर्य-छाया की संतान हैं। छाया की संतान होने की वजह से शनि का रंग काला है।
हनुमान जी के गुरु हैं सूर्यदेव
हनुमान जब शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हुए तो वे सूर्यदेव के पास पहुंचे और कहा कि मैं आपसे ज्ञान हासिल करना चाहता हूं। मुझे अपना शिष्य बना लीजिए। हनुमान जी की बात सुनकर सूर्यदेव ने कहा कि मैं किसी एक जगह पर रुक नहीं सकता, यहां तक कि मैं रथ से भी नहीं उतर सकता हूं।
सूर्यदेव की बात सुनकर हनुमान जी ने कहा कि मैं आपके साथ चलते-चलते ज्ञान हासिल कर लूंगा। आप बस मुझे अपना शिष्य बना लें। सूर्यदेव इस बात के लिए मान गए। इसके बाद सूर्यदेव ने हनुमान को सभी वेदों का ज्ञान दिया और हनुमान जी ने उनके साथ चलते-चलते ज्ञान हासिल किया था।